(ई-अभिव्यक्ति में प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. रेनू सिंह जी का हार्दिक स्वागत है। आपने हिन्दी साहित्य में पी एच डी की डिग्री हासिल की है। आपका हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी और उर्दू में भी समान अधिकार है। एक प्रभावशाली रचनाकार के अतिरिक्त आप कॉरपोरेट वर्ल्ड में भी सक्रिय हैं और अनेक कंपनियों की डायरेक्टर भी हैं। आपके पति एक सेवानिवृत्त आई एफ एस अधिकारी हैं। अपनी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद आप साहित्य सेवा में निरंतर लगी रहती हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना “फितरत“।)
“जगत की रीत” – डॉ. रेनू सिंह
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कहीं लहरों में नैया है,
कहीं तट पर बसेरे हैं,
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कहीं सागर ही प्यासा है,
कहीं मरु में हिलोरें हैं।
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कहीं फ़ूलों में मेले हैं ,
तो पतझड़ कहीं अकेले हैं
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कहीँ एकाकी रास्ते हैं,
कहीं राहों के रेले हैं
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कहीं है बाँसुरी की धुन ,
कहीं प्राणों में भी रुदन,
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कहीं निर्बाध उड़ रहे मन,
कहीं साँसों पे भी बन्धन,
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कहीं सतरंगी आँचल है,
कहीं न गज़ भर चादर भी,
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कहीं बह रहे हैं मधुसर,
कहीं ख़ाली है गागर भी,
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ये जग जल है और ज्वाला भी,
विषकुण्ड हैऔर मधुशाला भी,
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विष पी कर ‘शिव’बन जाओ तुम,
जल-जल निखरो तो ‘सोना’ भी।
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© डा. रेनू सिंह
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈