डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण गीत – भाव हमारे, भाव तुम्हारे…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 132 – भाव हमारे, भाव तुम्हारे…
भाव हमारे, भाव तुम्हारे, ज्यों नदिया के कुल किनारे
जैसा जैसा सोचा तुमने
वैसा वैसा सोचा हमने
हुए पराये पल में अपने
पलने लगे आँख में सपने
सपने भी तो लगते प्यारे, सपन तुम्हारे, सपन हमारे।
जनम जनम तड़पाया तुमने
खूब प्यास भोगी है हमने
अब जाकर पहचाना तुमने
तुमको सबकुछ माना हमने।
मुश्किल खुले अघर के द्वारे, धन्यवाद दो शब्द उचारे
ढाई आखर भाव तुम्हारे, ढाई आखर भाव हमारे।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
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