श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “वक़्त ने बदल कर रख दी तहरीर …”।)
ग़ज़ल # 69 – “वक़्त ने बदल कर रख दी तहरीर…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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ज़िंदगी खुशनुमा है जब दिल से दिल मिलता है,
जमाने में किसी को कहाँ सच्चा दिल मिलता है।
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वक़्त ने बदल कर रख दी तहरीर आशियाने की,
एक घर में रहकर नहीं कोई हिलमिल मिलता है।
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मुहब्बत में गुमसुम लोगों से क्या हाल पूछते हो,
ढूँढते माशूक़ पता उन्हें साँप का बिल मिलता है।
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दोस्ती का खेल भी खूब खेला जा रहा आजकल,
काम निकला फिर कब दोस्त से दिल मिलता है।
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रिश्ते नाते दिखावटी नुमाइश बनकर रह गए हैं,
आतिश को हाथ में नहीं कुछ हासिल मिलता है।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈