डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय कविता “सनातन प्रश्न ”।)
☆ सनातन प्रश्न ☆
चंद सनातन प्रश्नों के
उत्तर की तलाश में
मन आज विचलित है मेरा
कौन हूं,क्यों हूं
और क्या है अस्तित्व मेरा
शावक जब पंख फैला
आकाश में उड़ान भरने लगें
दुनिया को अपने
नज़रिए से देखने लगें
उचित-अनुचित का भेद त्याग
गलत राह पर कदम
उनके अग्रसर होने लगें
दुनिया की रंगीनियों में
मदमस्त वे रहने लगें
माता-पिता को मौन
रहने का संकेत करने लगें
उनके साथ चंद लम्हे
गुज़ारने से कतराने लगें
आत्मीय संबंधों को तज
दुनियादारी निभाने लगें
तो समझो –मामला गड़बड़ है
कहीं ताल्लुक
बोझ ना बन जाएं
और एक छत के नीचे
रहते हुए होने लगे
अजनबीपन का अहसास
सहना पड़े रुसवाई
और ज़लालत का दंश
तो कर लेना चाहिए
अपने आशियां की ओर रुख
ताकि सुक़ून से कर सकें
वे अपना जीवन बसर
डा. मुक्ता
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com
मो•न• 8588801878