श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “वसुधैव कुटुंबकम् एक कदम”।)
साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु ना भूखा जाय ।।
कबीर भी शायद हम दो, हमारे दो ,वाले ही होंगे, इसलिए आप कह सकते हैं, कमाल की सोच !
संतोषी सदा सुखी । अपने परिवार का पेट पल गया,और अतिथि देवो भव भी हो गया ।
लेकिन कबीर इतने सीधे सादे और भोले भाले भी नहीं थे । उन्होंने अपना कुटुंब बढ़ाना शुरू कर दिया । साधु संतों को ही अपना कुटुंब मान लिया ।
बेचारे घर वाले तो ताने बाने में उलझे रहते, और साधु भरपेट भोजन करते ।
एक जुलाहा बिना इंटरनेट और वाई फाई के ग्लोबल होता चला गया । कबीर की साखी और बीजक ने उसे विश्वगुरु बना दिया ।।
कल तक जो कबीर कुटुंब की बात करता था, वह अचानक कहने लगा ;
कबीरा चला बाजार में लिए लकुटी हाथ ।
जो फूंके घर आपना, चले हमारे साथ ।।
ताजी ताजी, उलटबासी लेकर आते थे कबीर !
लेकिन हम लोग इसे सीधा करना भी जानते हैं । हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले के डूबेंगे इसलिए ऐ कबीरा, तू चल अकेला, चल अकेला । भूख लगे, तो खा लेना एक दो केला ।
हम कोई संत नहीं, कबीर नहीं, बाल बच्चे वाले सद्गृहस्थ ! हमेशा कुटुंब की ही बात की, वसुधैव कुटुंबकम् की नहीं । अगर नौकरी धंधा अथवा कोई कामकाज नहीं होता, तो कोई दो कौड़ी के लिए भी नहीं पूछता । हैप्पिली रिटायर हो गए, अपन भले अपनी पेंशन भली ।
अचानक सैम अंकल संचार क्रांति कर गए और ओल्ड एज होम की जगह हमारे हाथ में मुखपोथी पकड़ा गए । व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में हमने भी दाखला ले लिया । और अचानक, लो जी, हम भी ग्लोबल हो गए । हमने भी धर्मवीर भारती का दामन छोड़ विश्व भारती का हाथ थाम लिया । कल जन्मदिन के अवसर पर हमने भी व्हाट्सएप पर विदेशों में बैठे लोगों से बात की ।।
हुआ न यह एक कदम towards वसुधैव कुटुंबकम् ! बचपन से हमें स्वदेशी में विदेशी का तड़का पसंद था । पहले सादी खिचड़ी बनाओ और बाद में उसमें मस्त घी वाले नमकीन मसाले का तड़का लगाओ । पहले मोटी रोटी में माल भरते थे, अब चीज़ वाला, चार मंजिला बर्गर और पिज्जा खाते हैं।
Be Indian, buy Indian Chinese Food. Know Your Customer KFC.
खेल खेल में हम कहां से कहां पहुंच गए ! आज दुनिया के हर कोने में भारतीय ही छाए हुए हैं।
हर क्षेत्र में भारतीय ही तो अपना परचम लहरा रहे हैं ! 1983 के वर्ल्ड कप से आरंभ, T-20 से G-20 तक का यह सुहाना सफर हम सबने मिल जुलकर ही तो तय किया है ।
जोक्स अपार्ट, हमारा फेसबुक परिवार भी बुद्धू बक्से के किसी स्टार परिवार से कम नहीं । हम यहां लोगों से मिलते हैं, जुड़ते हैं, लेकिन बिछड़ने के लिए नहीं । हमारा यह अपना स्वदेशी तरीका है वसुधैव कुटुंबकम् का । इस कदम में आप भी हमारे साथ कदम से कदम मिलाकर चल ही रहे हैं ।
कभी हमारे कदम बहक जाएं, तो ब्लॉक अथवा अनफ्रेंड मत कर देना । संभाल लेना । आपको विश्व भारती की सौगंध ;
आपके साथ अभी अभी का एक कदम …
वसुधैव कुटुंबकम् ..!!
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© श्री प्रदीप शर्मा
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