श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय सजल “चलो अब मौन हो जायें…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 75 – गीत – ज्ञान का दीपक जलाकर… ☆
ज्ञान का दीपक जलाकर,
तिमिर से हम मुक्ति पाएँ।
गीत हम सद्भावना के,
आइए मिल गुनगुनाएँ ।
सृजन के प्रहरी बने सब,
प्रगति की हम धुन सजाएँ।
देश में उत्साह भरकर,
नव सृजन का जश्न गाएँ।
सूर्य जैसा दमक सके न,
पछताना न इस बात पर।
जग मगाना सीख लेना,
लघु-दीपकों से रात-भर ।
खुश रहे इस देश में सब,
दर्द कोई छू न जाए।
द्वार में दीपक रखें मिल,
रूठने कोई न पाए।
बेबसों के अश्रु पौछें,
साथ में उनके खड़े हों।
लड़खड़ाते चल रहे जो,
दें सहारा तब बड़े हों ।
यदि भटक जाए पथिक तो,
मार्ग-दर्शक बन दिखाएँ।
हो सके तो मंजिलों तक,
राह निष्कंटक बनाएँ।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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