श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – “संतोष के दोहे …”. आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 163 ☆
☆ “संतोष के दोहे …” ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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जीवन के किस मोड़ पर, जाने कब हो अंत
मिलकर रहिये प्रेम से, कहते साधू संत
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कोई भी न देख सका, आने वाला काल
काम करें हम नेक सब, रहे न कभी मलाल
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कौन यहाँ कब पढ़ सका, कभी स्वयं का भाल
कोई भी न समझ सका, यहाँ समय की चाल
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ईश्वर ने हमको दिये, जीवन के दिन चार
दूर रहें छल-कपट से, रखिये शुद्ध विचार
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जीवन में गर चाहिए, सुख शांति “संतोष”
काम-क्रोध् मद-लोभ् से, दूर रहें रख होश
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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