श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “तुमसे हारी हर चतुराई…”।)
जय प्रकाश के नवगीत # 04 ☆ तुमसे हारी हर चतुराई… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
हम चंदन के पेड़ हुये न
तुमने सारी गंध चुराई।
आदम युग से
अब तक जाने
कितने जन्म लिये
हम में जीवित
रही सभ्यता
ले उपहास जिये
हम तो चतुर सुजान हुये न
तुमसे हारी हर चतुराई।
भूख जगाते
रहे रात दिन
पेट लिये खाली
बने बिजूका
खड़े खेत में
करते रखवाली
हम गुदड़ी के लाल हुये न
तुमने ओढ़ी भरी रज़ाई।
मौसम वाले
ख़त पढ़-पढ़ कर
उम्र गई है ऊब
तिनका-तिनका
कटे ज़िंदगी
सदी रही है डूब
हम अक्षर से शब्द हुये न
तुमने रच डाली कविताई।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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