श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जाको राखे सांइया”।)
अक्सर टॉयलेट में हम अकेले ही होते हैं, विचार कहीं भी हो, आँखें हर जगह निगरानी रखती है।मच्छर , खटमल और कॉकरोच से हमारी पुश्तैनी दुश्मनी चली आ रही है। जो हमारा खून पीये , अथवा हमारे सुख चैन में खलल डाले, उसके लिए , शत प्रतिशत शाकाहारी होते हुए भी, हमारी आंखों में खून उतर आता है।
होगा किसी के लिए जीवः जीवस्य भोजनम्, कोई निरीह प्राणी कभी हमारा भोजन नहीं बना, फिर भी एक आरोप हम पर सदा लगता चला आया है, कि हमने किसी का भेजा चाट लिया, अथवा किसी का दिमाग ही खा गए।लेकिन क्या करें, हम भी मजबूर हैं।।
वैसे आत्म रक्षा और सुरक्षा हेतु, अस्त्र, शस्त्र का उपयोग तो शास्त्रों द्वारा भी मान्य है, लेकिन यह आदमी कितना महान है, राजा महाराजा और वीर बहादुर, सदियों से जंगल में जा जाकर, जंगली जानवरों का शिकार करते चले आए हैं। इतना ही नहीं, उन्हें पिंजरे में कैद कर, सर्कस में करतब दिखलाने से भी बाज नहीं आए। आज के सभ्य समाज में, खैर है, जंगली जानवरों के शिकार पर प्रतिबंध जरूर है, लेकिन यह इंसान जंगल में भी मंगल मनाने लग गया है। आज जंगल का राजा, शेर नहीं इंसान है। अगर प्रोजेक्ट टाइगर नहीं होता, तो कहां रह पाते जिंदा आज, बेचारे ये वन्य जीव।
नियति का चक्र भी बड़ा विचित्र है। अत्याधुनिक हथियारों और सुरक्षा प्रयत्नों के बावजूद आज भी हमारी समस्या बेचारे मच्छर, मक्खी और कॉकरोच का आतंक है। कभी अहिंसक मच्छरदानी हमें मच्छरों से बचा भी लेती थी, लेकिन आज ऑल आउट, कैस्पर, कछुआ छाप अगरबत्ती और करेंट वाली रैकेट के बावजूद मच्छर हैं कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेते। छिपकली और कॉकरोच जैसे कीड़ों के लिए घरों में आए दिन, पेस्ट कंट्रोल करवाना पड़ता है।।
गर्मी में हमारी तरह कीड़े भी अक्सर मॉर्निंग वॉक, इवनिंग वॉक और रात्रि को सैर सपाटे के लिए निकला करते हैं। बस ऐसे ही एक शुभ मुहूर्त में हमारी नज़र टॉयलेट में सैर करते, एक मिनी कॉकरोच पर पड़ गई। बस क्या था, अचानक हमारे अंदर का जानवर जाग उठा, और हमने उसे मन ही मन चेतावनी भी दे डाली, खबरदार अगर टाईल्स की यह लक्ष्मण रेखा पार की। तुम्हारी मौत आज हमारे हाथों निश्चित है।
छठी इंद्रिय विरले प्राणियों में ही होती है। शायद कॉकरोच में कण कण में भगवान वाला अंश अवश्य होगा, जिसने मेरी मौन चेतावनी को पढ़ लिया और उस कॉकरोच को प्रेरणा दी, बेटा अबाउट टर्न ! और वह कॉकरोच चमत्कारिक ढंग से टाईल्स की लक्ष्मण रेखा पार करने के पहले ही, विजयी मुद्रा में वापस मुड़कर अपनी जान बचाने में कामयाब हुआ, और मैं एक पराजित योद्धा की तरह, अपने किये पर पछताने के अलावा कुछ ना कर सका।।
मुझे खुशी है, ईश्वर ने मुझे एक सोची समझी, नासमझी भरी, जीव हत्या से बाल बाल बचा लिया। हम कौन होते हैं किसी को मारने और अभय दान देने वाले, जब हम सबका मालिक एक है, और हम उसके हाथों की महज कठपुतली। किसी ने ठीक ही कहा है, जाको राखे साइयां, मार सके ना कोय ..!!
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© श्री प्रदीप शर्मा
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