श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है बाल गीत “कष्ट हरो मजदूर के…”।)
☆ तन्मय साहित्य #180 ☆
☆ बाल गीत – कष्ट हरो मजदूर के… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
(बाल गीत संग्रह “बचपन रसगुल्लों का दोना” से एक बालगीत)
चंदा मामा दूर के
कष्ट हरो मजदूर के
दया करो इन पर भी
रोटी दे दो इनको चूर के।।
तेरी चाँदनी के साथी
नींद खुले में आ जाती
सुबह विदाई में तेरे
मिलकर गाते परभाती,
ये मजूर न माँगे तुझसे
लड्डू मोतीचूर के
चंदा मामा दूर के
कष्ट हरो मजदूर के।।
पंद्रह दिन तुम काम करो
तो पंद्रह दिन आराम करो
मामा जी इन श्रमिकों पर भी
थोड़ा कुछ तो ध्यान धरो,
भूखे पेट न लगते अच्छे
सपने कोहिनूर के
चंदा मामा दूर के
कष्टहरो मजदूर के।।
सुना आपके अड्डे हैं
जगह जगह पर गड्ढे हैं
फिर भी शुभ्र चाँदनी जैसे
नरम मुलायम गद्दे हैं,
इतनी सुविधाओं में तुम
औ’ फूटे भाग मजूर के
चंदा मामा दूर के
दुख हरो मजदूर के
दया करो इन पर भी
रोटी दे दो इनको चूर के।।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈