श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “प्यारा मौसम।)  

? अभी अभी ⇒ प्यारा मौसम? श्री प्रदीप शर्मा  ?  

प्यार करने वाले मौसम नहीं देखते। काहे की सर्दी, गर्मी बरसात, उनके लिए तो, हर मौसम प्यार का होता है, लेकिन मौसम खुद भी बड़ा प्यारा होता है। हैं ऐसे कई प्रकृति – प्रेमी, जिन्हें मौसम से प्यार होता है। जो मौसम से करते प्यार, वो इंसान से प्यार करने से कैसे करें इंकार।

बच्चे किसे प्यारे नहीं होते ! ठीक बच्चों ही की तरह मौसम भी बड़ा प्यारा होता है। बच्चे अगर शैतान होते हैं, तो मौसम भी बेईमान होता है। अगर कभी कभी बच्चों के मारे नाक में दम होता है, तो मौसम भी किसी बच्चे से कम नहीं। सर्दी, जुकाम, खांसी और बुखार भी नाक में दम नहीं लेने देते। बार बार डॉक्टर के पास जाओ, तो वह भी यही कहता है, मौसम ही ऐसा है। ।

नवजात शिशु जब पहली बार पल्टी खाता है, तो कितनी खुशी होती है। बच्चे बड़े सब, बड़े खुश नज़र आते हैं, आज बबलू ने अपने आप पल्टी खाई। लेकिन जब मौसम एकदम पलट जाता है, तो बड़ा सावधान होना पड़ता है। मौसम हो या इंसान, दोनों का कोई भरोसा नहीं, कब पलटी खा जाए।

जिस तरह बच्चा हर मौसम में प्यारा लगता है, हर मौसम भी हमें बड़ा प्यारा लगता है। लेकिन बदमाशी में भी मौसम, बदमाश बच्चों से बहुत आगे है। अभी कुछ दिनों पहले तक हम सर्दी के कहर से परेशान थे। सूरज का मुंह देखने को तरस गए थे। थोड़ा कोहरा पड़ा, ठंड बढ़ी और बिना किसी बुरी आदत के मुंह से धुआं निकलना शुरू। बच्चे बूढ़े सभी, अलाव के पास नज़र आते थे।।

रोता बच्चा, एक खराब मौसम की तरह होता है। आप एक बार बच्चे को मना सकते हो, मौसम किसी की नहीं मानता। उसे बच्चों की ही तरह मनमानी करने की आदत है। बिगड़े बच्चे को सुधारना इतना आसान नहीं होता, लेकिन मौसम में एक अच्छी आदत है, वह अपने आप सुधर जाता है।

नया वर्ष और नवागत खुशियां लेकर आता है। आजकल मौसम मेहरबान होने लग गया है। आसमान में पतंगें उड़ाने का मौसम आ गया है। अब आपको सूर्य देवता के भी दर्शन होंगे और आसमान भी खुला मिलेगा। अब आप आसानी से खुली हवा में सूर्य नमस्कार कर सकते हो, पतंग उड़ा सकते हो, किसी की पतंग काट सकते हो।।

बहुत प्यारा मौसम है। सबको गले लगाने की इच्छा होती है। तिल गुड़ और मकर सक्रांति का पर्व भी यही संदेश लेकर आता है। मीठा खाएं और मीठा बोलें। बच्चों और मौसम से हम कम से कम इतना तो सीख ही सकते हैं।

बच्चों का स्वभाव बिल्कुल मौसम जैसा होता है। मौसम भी बच्चा ही है। हम कभी उससे परेशान रहते हैं तो कभी वह हमें प्यारा लगने लगता है। बच्चा बनने का मौसम आ गया है। मौसम भी तो बच्चा बन गया है। हम भी बचपना छोड़ें, मौसम की तरह  अपना स्वभाव सुधारें। प्यार लें, प्यार दें। एक प्यारे बच्चे की तरह ही, मौसम भी, बड़ा प्यारा है।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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