श्री सुजित कदम
(श्री सुजित कदम जी की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। साहित्य में नित नए प्रयोग हमें सदैव प्रेरित करते हैं। गद्य में प्रयोग आसानी से किए जा सकते हैं किन्तु, कविता में बंध-छंद के साथ बंधित होकर प्रयोग दुष्कर होते हैं, ऐसे में यदि युवा कवि कुछ नवीन प्रयोग करते हैं उनका सदैव स्वागत है। प्रस्तुत है उनकी एक अतिसुन्दर रचना “ सांगावा….”। )
☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #9 ☆
☆ सांगावा…. ☆
किती खोलवर जीवनाचा वार
संकटांचा भार काळजात .. . . !
शब्दांनीच सुरू शब्दांनी शेवट
चालू वटवट दिनरात.. . . . !
चार शब्द कधी देतात आधार
वास्तवाचा वार होऊनीया.. . . !
प्रेमामधे होई संवाद हा सुरू
अनुभव गुरू जीवनाचा.
नात्यांमधे शब्द पावसाळी मेघ
नशिबाने रेघ मारलेली. . . . . !
एखादी कविता मावेना शब्दात
सांगावा काव्यात सांगवेना . . . !
© सुजित कदम