प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ “पुस्तकों के दोहे” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
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सदा पुस्तकें सत्य की, होती हैं आधार।
सदा पुस्तकों ने किया, परे सघन अँधियार।।
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देती पुस्तक चेतना, हम सबको प्रिय नित्य।
पुस्तक लगती है हमें, जैसे हो आदित्य।।
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पुस्तक रचतीं वेग से, संस्कारों की धूप।
पढ़ें पुस्तकें मन लगा, पाओ तेजस रूप।।
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पुुस्तक गढ़े चरित्र को, पुस्तक रचती धर्म।
पुस्तक में जो दिव्यता, बनती करुणा-मर्म।।
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पुस्तक में इतिहास है, जो देता संदेश।
पुस्तक से व्यक्तित्व नव, रच हरता हर क्लेश।।
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पुस्तक साथी श्रेष्ठतम, सदा निभाती साथ।
पुस्तक को तुम थाम लो, सखा बढ़ाकर हाथ।।
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पुस्तक में दर्शन भरा , पुस्तक में विज्ञान।
पुस्तक में नव चेतना, पुस्तक में उत्थान।।
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पुस्तक का वंदन करो, पुस्तक है अनमोल।
पुस्तक विद्या को गढ़े, पुस्तक की जय बोल।।
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विद्यादेवी शारदा, पुस्तकधारी रूप।
पुस्तक को सब पूजते, रंक रहेे या भूप।।
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पुस्तक ने संसार को, किया सतत् अभिराम।
पुस्तक जीने की कला, पुस्तक नव आयाम।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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