श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’
(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशनाधीन ।राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 200 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)
☆ कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… प्रीति ने ही निखारा है… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆
(विधा-अनुष्टुप्छन्दः)
यह एक संस्कृत छंद है, जिस पर भगवत गीता के श्लोक भी लिखे गये है ।
कैसे भूलूँ सहारा हो जानो माधो सदैव ही ।
है तेरी याद सौगातें नैना भीगे वियोग में ।।1!!
चाहा तुम्हीं किनारा हो बहे प्रीति बहाव में।।
चैन भी देख खोते हैंं तुझे ढूँढ़ें अभाव में ।।2!!
दर्श की आस माधो है कौन देवे सुझाव को ।
साध प्रेमा पिपासा को ज़िन्दगी है लगाव में ।।3
नैन प्यासे जहाँ ताके बीते रैना उदास हो ।
आओ प्यारे नहीं रूठो तेरा हृद प्रवास हो ।।4!!
प्रीति ने ही निखारा है, रहती हूँ प्रभाव में।
प्रेम पंथ बुहारी हूँ, माधव मान लो अभी ।।5!!
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© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’
मंडला, मध्यप्रदेश
(दोहा कलश (जिसमें विविध प्रकार के दोहा व विधान है) के लिए मो 8435157848 पर संपर्क कर सकते हैं )
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈