श्री दिवयांशु शेखर
(युवा साहित्यकार श्री दिवयांशु शेखर जी के अनुसार – “मैं हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कविताएँ, कहानियाँ, नाटक और स्क्रिप्ट लिखता हूँ। एक लेखक के रूप में स्वयं को संतुष्ट करना अत्यंत कठिन है किन्तु, मैं पाठकों को संतुष्ट करने के लिए अपने स्तर पर पूरा प्रयत्न करता हूँ। मुझे लगता है कि एक लेखक कुछ भी नहीं लिखता है, वह / वह सिर्फ एक दिलचस्प तरीके से शब्दों को व्यवस्थित करता है, वास्तव में पाठक अपनी समझ के अनुसार अपने मस्तिष्क में वास्तविक आकार देते हैं। “कला” हमें अनुभव एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देती है और मैं जीवन भर कला की सेवा करने का प्रयत्न करूंगा।”)
☆ क्षितिज ☆
याद रखना
बदलते वक़्त में क्या न बदला,
लाख कोशिशों से कौन न पिघला,
याद रखना।
तुम्हारे मौजूदगी में कौन था खिन्न,
तुम्हारे जिक्र से ही कौन था प्रसन्न,
याद रखना।
तुम्हारे कहानियों में कौन था साथ,
बद से बदतर होते हालत में किसने छोड़ा हाथ,
याद रखना।
तुम्हारे आंसुओ पे किसने जताया अपना हक़,
तुम्हारे अच्छे इरादों पे भी किसने किया शक,
याद रखना।
एक चेहरे के पीछे कई चेहरों की परतें,
सामने गुणगान पीछे घमासान जो करते,
याद रखना।
तुम्हारे प्रयासों का किसने रखा मान,
भरोसे पर किसने छोड़े तीखे बाण,
याद रखना।
हर वक़्त किसे थी तुम्हारी तलब,
पीठ दिखाया किसने साधकर अपना मतलब,
याद रखना।
तेरे अरमानों को किसने जगाया,
कुछ प्राप्ति के बिना किसने रिश्तों को निभाया,
याद रखना।
तुम्हारे लबों की हसीं पे किसने किया काम,
तुम्हारे प्रेम का किसने लगाया दाम,
याद रखना।
ज़िन्दगी वृत्त की परिक्रमा काटती,
जाती वापस वहीं लौट के आती,
भले समय लगे लेकिन अच्छे और बुरे का फर्क समझाती,
याद रखना।
रास्तों के सफर में न किसी से गिले न कोई शिकवे रखना,
जो मिले उन अनुभवों से सीखना,
बढ़ते रहना,
पर याद रखना।
© दिवयांशु शेखर, कोलकाता
Bhai sahab jarur yaad rakhungaaa
वाह भावपूर्ण कविता याद रखना
Thank you All??
Ek no Miit… Keep congregating ur word on ur way..