श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – “संतोष के दोहे … ”. आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 169 ☆
☆ “संतोष के दोहे …” ☆ श्री संतोष नेमा ☆
(विधा:- कुंडलिया छंद, विधान:-1 दोहा (13-11) 2 रोला (11-13))
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गरमी में जो रख रहे, पशु-पक्षी का ध्यान
रखें सकोरा जल सहित, धन्य वही इंसान।
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धन्य वही इंसान, समझते जो पर पीड़ा
रख ओरों का मान, बनो मत बिच्छू कीड़ा।
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कहते कवि “संतोष”, बनें हम सच्चे धरमी
खोजें खुद में दोष, रखें शांत मन गरमी।
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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