श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गरीब, आदमी और मर्द”।)  

? अभी अभी # 52 ⇒ गरीब, आदमी और मर्द? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

क्या गरीब, आदमी भी होता है, क्या वह गरीब है, सिर्फ यही काफी नहीं!

आदमी तो गरीब भी होता है और अमीर भी, अच्छा भी और बुरा भी। हमने अच्छा अजीब आदमी तो देखा है, बुरा अजीब आदमी नहीं। अमीर तो इंसान होते हैं, वैसे बेचारा गरीब आदमी भी इंसान ही होता है।

गरीब आदमी कितनी भी कोशिश कर ले, अपनी गरीबी हटाने की, कोई भी सरकार नहीं चाहती कि गरीब हटे। जब तक गरीब है, तब तक ही तो गरीबी हटती रहेगी। अगर गरीब ही हट गया, तो फिर गरीबी किसकी हटाओगे। क्या दान पुण्य के लिए अमीरों का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा। सब गरीबों की ही सुनते हैं, अमीर की कब किसने सुनी है, सुध ली है। ।

एक गरीब, आदमी भी हो सकता है, एक ईमानदार इंसान भी हो सकता है, लेकिन मर्द कभी नहीं हो सकता। क्यों, क्या इसलिए, कि मर्द को दर्द नहीं होता! गरीब को तो इतना दर्द होता है, कि उसके दर्द से सरकारें तक पिघल जाती हैं। कैसी कैसी योजनाएं सरकार लाती है, उनके दर्द को कम करने के लिए, लेकिन उनका दर्द है कि कम होने का नाम ही नहीं लेता। बताऊं तुम्हें क्या, कहां दर्द है, जहां हाथ रख दो, वहां दर्द है।

जिस तरह सरकार हर देशवासी को एक छत का आश्वासन देती है, हर गरीब को गरीब कहलाने के गरीबी रेखा के नीचे यानी below Poverty Line रहना जरूरी है। थोड़ी भी लाइन ऊपर नीचे हुई और आप अगरीब घोषित! और अगरीब घोषित होने का मतलब, गरीबों के मूलभूत अधिकारों से हाथ धो बैठना। मूलभूत शब्द, यूं ही नहीं बन जाता। मूल सुविधा के पीछे भूत की तरह भागना ही मूलभूत सेवा का उपभोग करना है। ।

बहुत पीट लिया गरीबी का ढिंढोरा, आइए अब मर्दों वाली बात भी हो जाए!

मर्द न तो अमीर होता है और न गरीब, मर्द सिर्फ मर्द होता है। सुना है, गरीबों के घरों में अक्सर मर्द नहीं, एक अदद मरद होता है, जो अपनी बीवी की कमाई पर फौजदारी हक रखता है। एक मरद की बीवी अक्सर वो कामकाजी गरीब महिला होती है जो पहले अपने मरद से  शराब के पैसे के लिए मार खाती है और बाद में, शराब के बाद वाली  पिटाई का दुख भी झेलती है।

ऐसी लुटने वाली और पिटने वाली गरीब, कामकाजी औरतों का एक ही मंतव्य और निष्कर्ष होता है कि सभी मरद एक जैसे होते हैं। अब सभी मर्द मिल जुलकर फैसला कर लें, कि वे वाकई मर्द हैं या फिर सिर्फ एक सर्टिफाइड मरद।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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