श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “देव सभी पत्थर हैं।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 09 ☆ देव सभी पत्थर हैं… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

शहर गाँव

बस्ती सब जंगल है

लगता है

डर अपने आप से।

 

मन जब

शिकारी का होता है

एक अजब

पागलपन ढोता है

मृगतृष्णा

का मारा ये जीवन

कस्तूरी

उम्र व्यर्थ खोता है

 

झूठ जहाँ

सत्य की नक़ल है

पुते हुए

चेहरे हैं पाप से।

 

अर्थहीन

आदमी की प्रज्ञा है

नपुंसक

विचारों की संज्ञा है

शब्द-शब्द

रक्त में नहाया है

परिभाषित

होना अवज्ञा है

 

आदमी से

आदमी सबल है

देव सभी

पत्थर हैं शाप से।

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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