श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – “एक पूर्णिका … बेटा”. आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 170 ☆
☆ “एक पूर्णिका … बेटा” ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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बात हमारी मान लो बेटा
लोगों कों पहचान लो बेटा
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कौन है अपना कौन पराया
अपने से ही जान लो बेटा
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बड़े- बूढ़ों की बात सुनो तुम
गाँठ बड़ी सी बाँध लो बेटा
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राह धर्म की चलना हरदम
दिल में अब यह ठान लो बेटा
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काम-क्रोध मद लोभ से बचना
अपने मन में आन लो बेटा
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सोच-समझ कर बोलो हमेशा
मुख में मीठी जुवान लो बेटा
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खूब करो माँ-बाप की सेवा
कर्मों पर संज्ञान लो बेटा
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सपने सभी साकार करो तुम
ऐसी ऊँची उड़ान लो बेटा
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पाना यदि “संतोष”. तुम्हें है
हाथ में काम महान लो बेटा
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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