श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आज प्रस्तुत है आदरणीय श्री संतोष नेमा जी की समाज से प्रश्न करती हुई एक भावप्रवण कविता “कहाँ गया आँखों का पानी?”)
☆ कहाँ गया आँखों का पानी ?☆
कहाँ गया आँखों का पानी
खोज रहे ज्ञानी विज्ञानी।।
बात बात पर झगड़ा करते ।
आपस में ही लड़ते मरते ।।
नाहक में बदनाम जवानी।।
कहाँ गया आँखों का पानी ।।
मर्यादा,गैरत,खुद्दारी ।
गये दिनों की बातें सारी। ।।
गरम खून करता मनमानी ।
कहाँ गया आँखों का पानी ।।
बड़े बुजुर्ग पड़े हैरत में। ।
बचा शेष क्या अब गैरत में ।।
मर्यादा की मिटी निशानी।।
कहाँ गया आँखों का पानी ।।
मूल्य हीन संस्कार पड़े सब।
तिरष्कार की भेंट चढ़े सब।।
भूले जब से राम-कहानी ।
कहाँ गया आँखों का पानी ।
सडक,बग़ीचे या चौराहे ।
सब नाजायज गए उगाहे।।
करें खूब फूहड़ नादानी। ।
कहाँ गया आँखों का पानी।।
तंग हुए तन के पहिनावे ।
लाज-शरम अँसुआ ढरकावे
लफ्फाजों की चुभती बानी ।
कहाँ गया आँखों का पानी ।।
बिनु ‘संतोष’ नहीं सुख भैया।
दुख में डूबी जीवन नैया ।।
हुई तिरोहित रीति पुरानी। ।
कहाँ गया आँखों का पानी ।।
कहाँ गया आँखों का पानी ।
खोज रहे ज्ञानी विज्ञानी ।।
@ संतोष नेमा “संतोष”
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)
मोबा 9300101799
वाह क्या बात है
सादर आभार शुक्रिया नमन