सुश्री इन्दिरा किसलय
☆ “क्या फर्क पड़ता है…” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆
हर रोज़
एक नयी महाभारत !
कृष्ण और अर्जुन दिखाई नहीं देते !
अखबारों के लखटकिया विज्ञापनों में
विद्यादान का लोहा मनवाने को
आतुर “सारे द्रोण”
भीष्म अगर है कोई
तो पड़ा है मरणासन्न मौन !
देख रहा है
टुकुर टुकुर
चौड़ी हो रही हैं
दुर्योधनों दुःशासनों की मुस्कुराहटें !
“पैदल सैनिक”
कौरवों के हों या पांडवों के
क्या फर्क पड़ता है !
वे स्वयं एक शस्त्र हैं
जिनके हाथों में थमा दिया गया है
धातु का धारदार नुकीला टुकड़ा
मारने और मरने के लिए !
जो शापित हैं इतिहास में
आँकड़ों में
बदलने के लिए!
© सुश्री इंदिरा किसलय
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈