श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय लघुकथा – पुराने ज़माने के लोग –।)
☆ लघुकथा ☆ पुराने ज़माने के लोग ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
जिन दिनों बसों की अनिश्चितकालीन हड़ताल चल रही थी, उन्हीं दिनों में एक दिन अविनाश ने पिता से कहा, “पापा, गाँव से तीन-चार बार दादी का फ़ोन आ चुका है कि आकर मिल जाओ। कल चलें हम? परसों संडे को वापस आ जाएँगे।”
“क्यों नहीं? कौन-कौन जाएगा?”
“आप, मम्मी, मैं और सुनीता चारों चलेंगे।”
“क्यों न जनक को भी साथ ले लें, उसे भी गाँव जाना है, बसों की हड़ताल की वजह से नहीं जा पा रहा है। गाड़ी में सीट तो है ही।” जनक उनका बचपन का दोस्त था, उन्हीं के गाँव का और अब इसी शहर में रह रहा था। वे दोनों अक्सर एक साथ ही गाँव जाया करते थे।
“नहीं पापा, गाड़ी में चार आदमी ही आसानी से बैठ सकते हैं। और फिर प्राइवेसी भी तो कुछ होती है। कोई पराया साथ हो तो इन्जाॅय कैसे कर सकते हैं। मैं तो अकेला भी होऊँ तो किसी बाहर वाले को बैठाना पसंद नहीं करता।”
“यह तुम्हारी सोच है बेटा! मैं तो सोचता हूँ कि ख़ुद थोड़ी तकलीफ़ भी सहनी पड़े तो भी दूसरे को सुख देने की कोशिश की जानी चाहिए और हमें तो कोई तकलीफ़ सहनी ही नहीं है। गाड़ी में सीट है, सिर्फ़ पौन घंटे का रास्ता है।” नंदकिशोर को ‘पराया’ शब्द हथौड़े की तरह लगा था।
“पुराने ज़माने के लोग! हमेशा औरों के लिए सोचते रहे, तभी तो कभी ज़िंदगी को इन्जाॅय नहीं कर पाए। कभी अपने लिए जी कर देखिये पापा!”
नंदकिशोर कहना चाहते थे – किसी और के लिए जी कर देखो बेटा, असली आनंद उसी में है। यह आनंद का अभाव ही तुम में इन्जाॅय की तृष्णा पैदा करता है। तृष्णा कभी मरती नहीं है, इसीलिये लगातार इन्जाॅय करते हुए भी तुम कभी संतोष का अनुभव नहीं करते- पर प्रकटत: उन्होंने पूछा, “कल पक्का वापस आना है?”
“आना तो होगा ही, परसों ऑफ़िस भी तो जाना है।”
“तो फिर तुम हो आओ बेटा! मैं तो तीन-चार दिन रुकूँगा। एक दिन में मेरा मन नहीं भरता।”
अविनाश अपनी माँ और पत्नी के साथ गाँव के लिए रवाना हो गया। उसके जाने के पंद्रह-बीस मिनट के बाद नंदकिशोर ने स्कूटी उठाई और जनक को साथ लेकर गाँव की ओर चल दिए।
© हरभगवान चावला
सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा, सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈