श्री सुजित कदम
(श्री सुजित कदम जी की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। साहित्य में नित नए प्रयोग हमें सदैव प्रेरित करते हैं। गद्य में प्रयोग आसानी से किए जा सकते हैं किन्तु, कविता में बंध-छंद के साथ बंधित होकर प्रयोग दुष्कर होते हैं, ऐसे में यदि युवा कवि कुछ नवीन प्रयोग करते हैं उनका सदैव स्वागत है। प्रस्तुत है श्री सुजित जी की अपनी ही शैली में एक अतिसुन्दर रचना “सार्थक…!”। )
☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #10 ☆
☆ सार्थक…! ☆
कटेवरी हात उभा विटेवरी
दीनांचा कैवारी पांडुरंग . . . . !
नाही राग लोभ नाही मोजमाप
सुख वारेमाप दर्शनात. . . . . !
रूप तुझे देवा मना करी शांत
जाहलो निवांत अंतर्यामी . . . . !
रमलो संसारी नाही तुझे भान
गातो गुणगान आता तरी. . . . . !
कीर्तनात दंग भक्तीचाच रंग
रचिला अभंग आवडीने. . . . !
भीमा नदीकाठ सार्यांचे माहेर
कृपेचा आहेर अभंगात. . . !
सुख दुःखे सारी भाग जगण्याचा
स्पर्श चरणांचा झाल्यावर. . . . !
सुजा म्हणे आता सार्थक जन्माचे
नाम विठ्ठलाचे ओठी आले.
© सुजित कदम