डॉक्टर मीना श्रीवास्तव
☆ “महाकवि कालिदास दिन – (आषाढस्य प्रथम दिवसे!)” – भाग-1 ☆ लेखक और प्रस्तुतकर्ता – डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆
नमस्कार प्रिय पाठक गण!
आज १९ जून २०२३, आज की तिथी आषाढ शुद्ध प्रतिपदा, अर्थात आषाढ मास का पहला दिन. आज का दिन साहित्य प्रेमियों के लिए सुवर्ण दिन, क्योंकि इस दिन हम मनाते हैं ‘कालिदास दिवस’| मित्रों, यह उनका जन्मदिन अथवा स्मृति दिन नहीं है, क्योंकि, वे दिन हमें ज्ञात ही नहीं हैं| परन्तु उनकी काव्यप्रतिभा इतनी एवढी उच्च कोटि की है कि, हमने यह दिवस उनके ही एक चिरकालजीवी खंड काव्य से ढूंढा है| कालिदासजी, संस्कृत भाषा के महान सर्वश्रेष्ठ कवी तथा नाटककार! दूसरी-पांचवी सदी में गुप्त साम्राज्यकालीन अनुपमेय साहित्यकार के रूप में उन्हें गौरवान्वित किया गया है| उनकी काव्यप्रतिभा के अनुरूप उन्हें दी गई “कविकुलगुरु” यह उपाधी स्वयं ही अलंकृत तथा धन्य हो गयी है! संस्कृत साहित्य की रत्नमाला में उनका साहित्य उस माला के मध्यभाग में दमकते कौस्तुभ मणी जैसा प्रतीत होता है| पाश्चात्य और भारतीय, प्राचीन तथा अर्वाचीन विद्वानों के मतानुसार कालिदासजी जगन्मान्य, सर्वश्रेष्ठ और एकमेवाद्वितीय ऐसे कवि हैं! इस साक्षात सरस्वतीपुत्र की बहुमुखी व बहुआयामी प्रज्ञा, प्रतिभेचे तथा मेधावी व्यक्तित्व का कितना बखान करें? कालिदास दिवस का औचित्य साधते हुए इस अद्वितीय महाकवि के चरणों में मेरी शब्दकुसुमांजली!
ज्ञानी पाठकगणों, आप इसमें कवि कालिदासजी के प्रति मेरी केवल और केवल श्रद्धा ही ध्यान में रक्खें। मात्र मेरा मर्यादित शब्दभांडार, भावविश्व तथा संस्कृत भाषा का अज्ञान, इन सारे व्यवधानों को पार करते हुए मैंने यह लेख लिखने का फैसला कर लिया| मित्रों, मुझे संस्कृत भाषा का ज्ञान नहीं है, इसलिए मैंने कालिदासजी के साहित्य का मराठी में किया अनुवाद (अनुसृष्टी) पढ़ा! उसी से मैं इतनी अभिभूत हो उठी| यह लेख मैंने पाठक की भूमिका में रसपान का आनंद लेने के हेतु से ही लिखा है, न कि, कालिदासजी के महान साहित्य के मूल्यांकन के लिए!
इन कविराज के अत्युच्य श्रेणी के साहित्य का मूल्यमापन संख्यात्मक न करते हुए गुणात्मक तरीके से ही करना होगा। राष्ट्रीय चेतना का स्वर जगाने का महान कार्य करने वाले इस कवि का राष्ट्रीय नहीं बल्कि विश्वात्मक कवि के रूप में ही गौरव करना चाहिए! अत्यंत विद्वान के रूप में गिने जाने वाले उनके समकालीन साहित्यकारोंने (उदा. बाणभट्ट) ही नहीं, बल्कि आज दुनियाभर के लेखकों ने भी वह किया है! उनकी जीवनी के बारे में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है| उनके नाम से जुडी अंदाजन ३० साहित्य निर्मितियों में ७ साहित्यकृतियां निश्चित रूप से उन्हींकी हैं, यह मान्यता है| ऐसी क्या विशेषता है कालिदासजी के सप्तचिरंजीवी साहित्य अपत्यों में, कि पाश्चात्य साहित्यिकों ने कालिदास का नामकरण “भारत का शेक्सपियर” ऐसा किया है! मैं तो दृढ़तापूर्वक ऐसा मानती हूँ कि, इसमें गौरव कालिदासजी का है ही नहीं, क्यों कि वे सर्वकालीन, सर्वव्यापी तथा सर्वगुणातीत ऐसे अत्युच्य गौरवशिखर पर पहलेसे ही आसीन हैं, इसमें यथार्थ गौरव है शेक्सपिअर का, सोचिये उसकी तुलना किसके साथ की जा रही है, तो कालिदासजी से!
इस महान रचयिता के जीवन के बारे में जानना है तो उनके साहित्य का बारम्बार पठन करना होगा, क्योंकि उनके जीवन के बहुतसे प्रसंग उनकी साहित्यकृतियों में उतरे हैं, ऐसी मान्यता है| उदाहरण के तौर पर खंडकाव्य मेघदूत, विरह के शाश्वत, सुंदर तथा जीवन्त रूप में इस काव्य को देखा जाता है, बहुतसे विशेषज्ञों का मानना है कि कल्पना के उच्चतम मानकों का ध्यान रखते हुए भी, बिना अनुभव के इस कल्पनाशील दूतकाव्य कविता की रचना करना बिलकुल असंभव है। साथ ही कालिदासजी ने जिन विभिन्न स्थानों और उनके शहरों का सटीक तथा विस्तारपूर्वक वर्णन किया है, वह भी तब तक संभव नहीं है जब तक कि उन स्थानों पर उनका वास्तव्य नहीं रहा होगा! कालिदासजी की सप्त कृतियों ने समूचे विश्व को समग्र भारतदर्शन करवाया! उज्जयिनी नगरी का वर्णन तो एकदम हूबहू, जैसे कोई चलचित्र के समान! इसलिए कई विद्वान मानते हैं कि कालिदासजी का वास्तव्य संभवतः अधिकांश समय के लिए इस ऐश्वर्यसंपन्न नगरी में ही रहा होगा! उनकी रचनाएं भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शनशास्त्र पर आधारित हैं! इनमें तत्कालीन भारतीय जीवन का प्रतिबिंब दृष्टिगोचर होता है, रघुवंशम् में इतिहास एवं भूगोल के बारे में उनका गहन ज्ञान, निःसंदेह उनकी अपार बुद्धिमत्ता और काव्यप्रतिभा का प्रतीक है, इसमें कोई भी शक नहीं| इस भौगोलिक वर्णन के साथ ही भारत की पौराणिक, राजकीय, सांस्कृतिक, सामाजिक, दार्शनिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि और ज्ञान, साथ ही सामान्य तथा विशिष्ट व्यक्तियों की जीवनशैली, इन सबका पर्याप्त दर्शन इस महान कवि की रचनाओंमें पाया जाता है|
उनकी काव्य एवं नाटकों की भाषा और काव्यसौंदर्य का वर्णन कैसे करें? भाषासुंदरी तो मानों उनकी आज्ञाकारी दासी! प्रकृतिके विभिन्न रूप साकार करने वाला ऋतुसंहार यह काव्य तो प्रकृतिकाव्य का उच्चतम शिखर ही समझिये! उनके अन्य साहित्य में उस उस प्रसंग के अनुसार प्राकृतिक सौंदर्य का मनोहर वर्णन यानि अद्भुत तथा अद्वितीय इंद्रधनुषी रंगों की छलकती बौछार, हमें तो बस इन रंगों में रंग जाना है, क्योंकि ये सारी काव्यरचनाएँ छंदों के चौखटों में सहज, सुन्दर और अनायास विराजमान हैं, जबरदस्ती से जानबूझकर बैठाई नहीं गईं!
यह अनोखा साहित्य है अलंकारयुक्त तथा नादमयी भाषा का सुरम्य आविष्कार! एक सुन्दर स्त्री जब अलंकारमंडित होती है, तब कभी कभी ऐसा प्रश्न मन में उठता है कि, अलंकारों का सौन्दर्य उस सौन्दर्यवती के कारण वर्धित हुआ है, या उसका सौन्दर्य अलंकारोंसमेत सजनेसे और अधिक निखरा है! मित्रों, कालिदासजी के साहित्य का अध्ययन करते हुए यहीं भ्रम निर्माण होता है! इस महान कविराज की सौन्दर्य दृष्टि की जितनी ही प्रशंसा की जाए, कम ही होगी! उसमें लबालब भरे अमृतकलशोंसम नवरस तो हैं ही, परन्तु, उनमें विशेषकर है शृंगाररस! स्त्री सौंदर्य का लक्षणीय लावण्यमय आविष्कार तो उनके काव्य तथा नाटकों में जगह जगह पाया जाता है! उनकी नायिकाएं ही ऐसी हैं कि, उनका सौन्दर्य शायद वर्णनातीत होगा भी कदाचित, परन्तु कालिदासजी जैसा शब्दप्रभू हो तो उनके लिए क्या कुछ असंभव है? परन्तु इस सौन्दर्य वर्णन में तत्कालीन आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्योंका कहीं भी पतन नहीं हुआ है! अलंकारोंके जमघट में सबसे प्रमुख आभूषण है उपमालंकार, वे उपमाएं कैसी तो अन्य व्यक्तियों के लिए अनुपमेय! लेकिन जबतक इन महान संस्कृत भाषा की रचनाएं प्राकृत प्रांतीय भाषाओं में जनसामान्य तक पहुँचती नहीं, तबतक इस विश्वात्मक कवि का स्थान अखिल विश्व में शीर्ष होकर भी अपने ही देश में अपरिचित ही रहेगा! अर्थात इस साहित्य का कई भारतीय भाषाओँ में अनुवाद (अनुसृष्टी) हुआ है, यह उपलब्धि भी कम नहीं है!
मेघदूत (खण्डकाव्य)
खण्डकाव्यों की रत्नपेटिका में विराजित कौस्तुभ मणि जैसे मेघदूत, कालिदासजी की इस रचनाका काव्यानंद यानि स्वर्ग का सुमधुर यक्षगानही समझिये! ऐसा माना जाता है कि महाकवी कालिदासजी ने अपने प्रसिद्ध खंडकाव्य मेघदूत को आषाढ़ मास के प्रथम दिन रामगिरी पर्वतपर (वर्तमान स्थान-रामटेक) लिखना प्रारंभ किया! उनके इस काव्य के दूसरे ही श्लोक में तीन शब्द आये हैं, वे हैं “आषाढस्य प्रथम दिवसे”! आषाढ़ के प्रथम दिन कालिदासजी ने जब आसमान में संचार करनेवाले कृष्णमेघ देखे, तभी उन्होंने अपने अद्भुत कल्पनाविलास का एक काव्य में रूपांतर किया, यहीं है उनकी अनन्य कृति “मेघदूत”! यौवन की सहजसुंदर तारुण्यसुलभ तरल भावना तथा प्रियतमा का विरह, इन प्रकाश और तम के संधिकाल का शब्दबद्ध रूप दृष्टिगोचर होनेपर हमारा मन भावनाविवश हो उठता है|
अलका नगरी में यक्षों का प्रमुख, एक यक्ष कुबेर को महादेवजी की पूजा हेतु सुबह ताजे प्रफुल्लित कमलपुष्प देनेका काम रोज करता है| नवपरिणीत पत्नी के साथ समय बिताने हेतु वह यक्ष कमलपुष्पोंको रात्रि में ही तोड़कर रखता है| दूसरे दिन सुबह जब कुबेरजी के पूजा करते समय खिलनेवाले पुष्प में रात्रि को बंदी बना एक भ्रमर कुबेरजी को डंख मारता है| क्रोधायमान हुए कुबेरजी यक्ष को शाप देते हैं| इस कारण उस यक्ष की और उसकी प्रेमिका को अलग होना पड़ता है| इसी शापवाणी से मेघदूत इस अमर खंडकाव्य की निर्मिती हुई| यक्ष को भूमि पर रामगिरी पर १ वर्ष के लिए, अलकानगरीमें रहनेवाली अपनी पत्नीसे दूर रहने की सजा मिलती है| शाप के कारण उसकी सिद्धी का नाश हो जाता है, जिसके कारण वह किसी भी प्रकारसे पत्नी को मिल नहीं पाता| इसी विरहव्यथा का यह “विप्रलंभ शृंगार का काव्य” है| कालिदासजी की कल्पना की उड़ान यानि यह कालातीत, अतिसुंदर ऐसा प्रथम “दूत काव्य” के रूप में रचा गया! फिर रामगिरी से, जहाँ सीताजी के स्नानकुंड हैं, ऐसे पवित्र स्थान से अश्रु भरे नेत्रोंसे यक्ष मेघ को सन्देश देता है! मित्रों, अब देखते हैं वह सुंदर श्लोक!
तस्मिन्नद्रौ कतिचिदबलाविप्रयुक्त: स कामी,
नीत्वा मासान्कनकवलयभ्रंशरिक्तप्रकोष्ठ: ।
आषाढस्य प्रथम दिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं,
वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श ।
अर्थात, अपने प्रिय पत्नी के वियोग से दग्धपीडित और अत्यंत व्यथित रहने के कारण यक्ष के मणिबंध का (कलाई) सुवर्णकंकण, उसके देह के क्षीण होने के कारण शिथिल (ढीला) होकर भूमि पर गिर जाने से, उसका मणिबंध सूना सूना दिख रहा था! आषाढ़ के प्रथम दिन उसे नज़र आया एक कृष्णवर्णी मेघ! वह रामगिरी पर्वत के शिखर को आलिंगनबद्ध कर क्रीडा कर रहा था, मानों एकाध हाथी मिट्टीके टीले की मिटटी उखाड़ने का खेल कर रहा हो|
कालिदास स्मारक, रामटेक
प्रिय मित्रों, यहीं है उस श्लोक के मानों काव्यप्रतिभा का तीन अक्षरोंवाला बीजमंत्र “आषाढस्य प्रथम दिवसे”! इस मंत्र के प्रणेता कालिदासजी के स्मृति को अभिवादन करने हेतु प्रत्येक वर्ष हम आषाढ महीने के प्रथम दिन (आषाढ शुक्ल प्रतिपदा) कालिदास दिन मानते हैं| जिस रामगिरी (वर्तमान में रामटेक) पर्वत पर कालिदासजी को यह काव्य रचने की स्फूर्ति मिली, उसी कालिदासजी के स्मारक को लोग भेंट देते हैं, अखिल भारत में इसी दिन कालिदास महोत्सव मनाया जाता है! प्रिय पाठकों, हमारे लिए गर्व की बात है कि, महाराष्ट्र का प्रथम कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय रामटेक में स्थापित हुआ| इस साल कालिदास दिन है १९ जून को|
क्रमशः…
© डॉ. मीना श्रीवास्तव
ठाणे
दिनांक- १९ जून २०२३
फोन नंबर: ९९२०१६७२११
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈