श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जीरे से नाराज़ी।)  

? अभी अभी # 72 ⇒ जीरे से नाराज़ी? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

नून तेल और दाल रोटी ही की तरह, जब भी तड़के की बात होगी, राई जीरे का जिक्र जरूर होगा। नून तेल और दाल रोटी की तरह हर आम आदमी को राई जीरे का भाव भी पता होना चाहिए।

हमारे भारतीय मसाले भोजन को केवल स्वादिष्ट ही नहीं बनाते, स्वास्थ्यवर्धक भी बनाते हैं। आप लाख आयोडिनयुक्त नमक की बुराई कर लो, देश का आम आदमी आज भी सत्ताईस रुपए किलो का टाटा का नमक ही खा रहा है। आप अगर टाटा का नमक खाते हैं, तो देश का नमक खाते हैं। कोई शक।।

जब हमें हर चीज की कीमत चुकानी है तो विकास की भी चुकानी ही पड़ेगी। जाहिर है, महंगाई भी बढ़ेगी। महंगाई का सबसे अधिक बोझ आम आदमी पर पड़ता है, लेकिन जब आम आदमी भी, खास आदमी बनकर, इसी नाम की पार्टी बनाकर राजनीति में प्रवेश ही नहीं करता, खुद सत्ता में रहता हुआ, जब केंद्र की सत्ता के नाक में दम कर देता है, तब उसकी कीमत आम आदमी को भी चुकानी पड़ती है।

आज विपक्ष और जनता एक दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहा रहे। महंगाई अब डायन नहीं रही, जब आज के बच्चे भूत से नहीं डरते तो महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन करके आप किसे डराने चले हो।।

कभी आदमी आम और खास होता था, आजकल आम आदमी के पास सिर्फ गुठली है और असली आम गरीबी रेखा के नीचे वाला आदमी, यानी below poverty line वाला बीपीएल कार्ड वाला हितग्राही चूस रहा है। उधर वास्तविक गरीब आदमी को सरकार मुफ्त राशन नसीब करवा रही है और इधर कथित आम आदमी को मिर्ची लग रही है।

आपने वाकई आम आदमी की दुखती रग पर सांसद सनी देओल का ढाई किलो का हाथ धर दिया। ये मिर्ची भी जब हरी होती है, सब्जी में छोंक दी जाती है और कुछ की चटनी बना ली जाती है, लेकिन इसे लाल होने का बहुत शौक है। बहुत महंगा पड़ा हमें इस लाल मिर्ची का शौक, जब आधा किलो, सिर्फ ₹२२० की पड़ी।।

हमारी मुख्य नाराजी तो जीरे से थी, जिसके भाव कब के आसमान छू चुके हैं। अच्छा जीरा आज थोक में साढ़े पांच सौ रुपए प्रति किलो से कम नहीं। उधर शेयर के बढ़ते भाव देख कुछ लोग खुशी से उछल रहे हैं, और इधर हमें मिर्ची पर मिर्ची लग रही है।

सबकी अपनी अपनी कमजोरी होती है, किसके मुंह में पानी नहीं आता, हमारा बस चले तो हम तो पानी भी जीरे का ही पीयें।‌ अहा! क्या खुशबू होती है भुने हुए जीरे की। तड़ तड़ से ही तो तड़के की खुशबू और स्वाद। हींग, राई और जीरा, मानो शहनाई, ढोल, मंजीरा।।

हमारे मसालों में स्वाद भी है, स्वास्थ्य भी है और सात्विकता भी। लेकिन उस पर भी दिन दहाड़े डाका, महंगाई, मिलावट ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा। जिंदगी अब बेस्वाद हो चुकी है, हल्दी महंगी, धना महंगा, मत पूछो क्या भाव मिर्ची और जीरा। चुटकी भर हींग की कीमत तुम क्या जानो नरेंदर बाबू। पड़ोसी के घर से, हींग, जीरे की खुशबू, शायद आ रही है। मेरी सांसों को जो, महका रही है।

अगर लगातार महंगे होते हुए जीरे की आम आदमी से, इसी तरह नाराजी चलती रही, तो वह दिन दूर नहीं, जब आम आदमी यह कहने को मजबूर हो, कि

जिंदगी के तड़के में अब कहां हींग राई और जीरा !

फिर भी देखो, इंसान खुशी खुशी जी रहा।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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