श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 86 – मनोज के दोहे… ☆
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1 धार
नदिया के तट बैठकर, देखी उसकी धार।
मीन करे अठखेलियाँ, कभी न मानी हार।।
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2 लहर
सुख-दुख की उठती लहर, हर दिन आती भोर।
तैराकी होता वही, पार करे बिन शोर।।
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3 प्रवाह
नद-प्रवाह जीवन-मधुर, सागर होता खार।
कंठ प्यास की कब बुझी,यह जीवन का सार।।
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4 भँवर
मानव फँसता भँवर में, जो निकला वह वीर।
संयम दृढ़ता धैर्य से, बन जाते रघुबीर।।
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5 कूल
कलकल बहती है नदी, शांत मनोरम कूल।
तन-मन आह्लादित करे, मिटें हृदय के शूल।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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