श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “कल न जाने फिर क्या हो…”।)
ग़ज़ल # 81 – “कल न जाने फिर क्या हो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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आओ मौज मनालें कल न जाने फिर क्या हो,
आ जा हंसलें गालें कल न जानें फिर क्या हो।
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सूरज ढ़लने लगा छाया तो लम्बी होनी है,
आ जाम लगा लें कल न जाने फिर क्या हो।
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रात अमावस वाली है अंधकार भी लाज़िम है,
तुमको गले लगालें कल न जाने फिर क्या हो।
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लहरें आलिंगन करतीं झील किनारे आ गई हैं,
आ मन को डुबा लें कल न जाने फिर क्या हो
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सरसों फूली बसंती गोद हरी भरी दिखती है,
पीली चूनर लहरा लें कल न जाने फिर क्याहो
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बिखरी पलाश लालिमा महुआ की मादक गंध,
फाग सुर में गालें कल न जानें फिर क्या हो।
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भुला दो वो बातें जो पीड़ा देतीं हो “आतिश”,
दिन जीभर जी लें कल न जाने फिर क्या हो।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈