श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ कविता ☆ ।। शब्द, प्रेम की लकीर देते हैं या फिर कलेजा चीर देते हैं ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
।।विधा।। मुक्तक।।
[1]
शब्द तीर तलवार देते घाव आपार हैं।
मत बोलो कटु कि कटार सी धार है।।
समस्या निदान नहीं तो रिश्ते तार तार।
तब सुलह नहीं अंत में होती तकरार है।।
[2]
शब्दों से दिखता मनुष्य का संस्कार है।
आपके प्रभाव का ये सटीक आधार है।।
कुशब्द स्थान निशब्द रह जाओ हमेशा।
दोनों को लगती ठेस दिल जार जार है।।
[3]
शब्दों के दाँत नहीं काटते बहुत जोर से।
शब्द बांट देते भाई भाई को हर छोर से।।
मर्यादा में ही बोलो ज्यादा भी मत बोलो।
दोस्ती में गिरह लग जाती हर ओर से।।
[4]
मीठी जुबानआदमी को मिली नियामत है।
मानव लोकप्रियता मिली जैसे जमानत है।।
जंग नहीं बस जुबां से होती दिलों पे हकूमत।
खराब व्यवहार केवल लाता कयामत है।।
[5]
कोशिश करो बस दिल में उतर जाने की।
कोशिश हो सबकीआपके उधर जाने की।।
वाणी वचन आपकीं पूंजी है सबसे बड़ी।
कोशिश न हो बस दिल से उतर जाने की।।
© एस के कपूर “श्री हंस”
बरेली
मोब – 9897071046, 8218685464