डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – तुमसे मिलकर लगा…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 144 – तुमसे मिलकर लगा…
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तुमसे मिलकर लगा कि जैसे
मिला पुराना मीत।
बिन देखे ही देख लिया हो
ऐसा था संवाद
जैसे कोई पा लेता हो
भूली बिसरी याद
सूने मन में गूँज उठा था- संतूरी संगीत।
मोहक है मुस्कान तुम्हारी
सरल सहज व्यवहार
सम्मोहन ने खोल दिये हैं आमंत्रण के द्वारा
अंतरतम में झंकृत होता, कोई मधुरिम गीत।
कोई किसी से क्यों मिलता है
आखिर क्या उपयोग
शायद कोई गहन अर्थ है
इसीलिये संयोग।
वर्तमान फिर दिखा रहा है, जो कुछ हुआ व्यतीत।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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