आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण नवगीत “जीवन तन-मन-धन का स्वामी”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 144 ☆
☆ नवगीत – जीवन तन-मन-धन का स्वामी… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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मन की
मत ढीली लगाम कर
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मन मछली है फिसल जायेगा
मन घोड़ा है मचल जायेगा
मन नादां है भटक जाएगा
मन नाज़ुक है चटक जायेगा
मन के
संयम को सलाम कर
.
तन माटी है लोहा भी है
तन ने तन को मोहा भी है
तन ने पाया – खोया भी है
तन विराग का दोहा भी है
तन की
सीमा को गुलाम कर
.
धन है मैल हाथ का कहते
धन को फिर क्यों गहते रहते?
धनाभाव में जीवन दहते
धनाधिक्य में भी तो ढहते
धन को
जीते जी अनाम कर
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जीवन तन-मन-धन का स्वामी
रखे समन्वय तो हो नामी
जो साधारण वह ही दामी
का करे पर मत हो कामी
जीवन
जी ले, सुबह-शाम कर
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
९-२-२०१५, जबलपुर
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