श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मोहल्ले का कुत्ता”।)  

? अभी अभी # 91 ⇒ मोहल्ले का कुत्ता? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

शहरों की सड़कों और गलियों में आजादी से घूमने वाली इस प्रजाति को अक्सर आवारा अथवा सड़क छाप कुत्ता कहकर ही संबोधित किया जाता है। अन्य समस्याओं की तरह इस समस्या का भी सामना करते हुए एक आम आदमी अपनी जिंदगी काट ही लेता है। समस्या तब और गंभीर हो जाती है, जब उसे कोई कुत्ता काट लेता है।

Barking dogs seldom bite. लेकिन कोई भी कुत्ता काटने के पहले अनुमति नहीं लेता।

एक राहगीर के लिए भले ही वह आवारा सड़क छाप कुत्ता हो, लेकिन उसका भी एक मोहल्ला होता है, उसके भी कुछ संगी साथी होते हैं। ।

सुबह जो लोग टहलने जाते हैं, उन्हें मोहल्ले के ये कुत्ते अक्सर नजर आ जाते हैं इनका एक झुंड होता है, जिसमें बच्चे बूढ़े सभी शामिल होते हैं जिनमें एक बूढ़ी कुतिया भी शामिल होती है। हर घर का बचा भोजन और रोटी इनके लिए सांझा चूल्हा होता है।

इनके छोटे छोटे पिल्लों के साथ मोहल्ले के बच्चे खेला करते हैं, कोई भी पिल्ला मुंह उठाए आपके साथ हो लेता है, भले ही आपको कुत्तों से नफरत हो।

घर की महिलाओं और बच्चों को मोहल्लों के इन कुत्तों से अनायास ही लगाव हो जाता है। केवल सूंघने मात्र से एक अपरिचित, इनके लिए परिचित हो जाता है। कभी कभी कोई परिचित कुत्ता अनायास ही आपके साथ हो लेता है, मानो आप धर्मराज हों। लेकिन इनका एक दायरा होता है, हद होती है, ये उसे क्रॉस नहीं करते। ।

दुश्मन कुत्तों से इन्हें भी खतरा होता है। ये बिना वेतन के अपने मोहल्ले की चौकीदारी करते रहते हैं, कोई बाहरी आदमी आए, तो भौंकना शुरू कर देते हैं, और अगर उसने प्रतिरोध किया अथवा लकड़ी और पत्थर उठाया, तो फिर ये भी अपनी वाली पर आ जाते हैं। भौंकना इनका हथियार है। जब ये समूह में होते हैं, तो रात भर भौंक भौंककर लोगों की नींद हराम कर देते हैं।

हमारी रहवासी मल्टी पूरी तरह सुरक्षित है, वहां आवारा कुत्तों का प्रवेश वर्जित है। यह अलग बात है कि कुछ रहवासी सदस्यों ने ही विदेशी नस्ल के कुत्ते पाल रखे हैं। एक बच्चे से अधिक प्यार और देखभाल उसे लगती है। उसका भी घर के अन्य सदस्यों की तरह एक प्यारा सा नाम होता है। वह भी बीमार पड़ता है, उसका डॉक्टर अलग है, उसका भी अपना एक अलग पार्लर है। ।

सुबह वह बलात् अपने मालिक/मालकिन को टहलने ले जाता है। वह उसका दिशा मैदान का समय होता है। उसके गले में पट्टा और चेन भी होती है। वह अपने मालिक को इतनी फुर्ती से बाहर खुले में ले जाता है, मानो कोई ट्रेन छूट रही हो। लघु शंका के लिए तो प्रशासन ने उसके लिए स्थायी रूप से बिजली के खंभे खड़े कर ही दिए हैं, जिसमें कुछ योगदान सड़क के पास खड़ी आयातित कारों का भी हो जाता है, लेकिन फिर भी दीर्घ शंका के लिए स्वच्छ शहर में मनमाफिक जगह ढूंढना इतना आसान नहीं। जगह जगह, जमीन को सूंघा जाता है, परखा जाता है, उसके बाद ही नित्य कर्म को अंजाम दिया जाता है। स्वच्छ भारत में इनके योगदान से प्रशासन भी अपरिचित नहीं, लेकिन समान नागरिक संहिता और जनसंख्या नियंत्रण कानून इन पर तो लागू नहीं हो सकता न।

आज स्थिति यह है कि कुछ लोग सुबह अपने पालतू कुत्तों के कारण टहल रहे हैं तो कुछ सड़क के आवारा कुत्तों के कारण नहीं टहल पा रहे हैं। आपको तो कुत्ता कभी भी काट सकता है, लेकिन आप तो कुत्ते को नहीं काट सकते। नेताओं के भाषण सुन सुनकर कान इतने पक गए हैं कि मोहल्ले के कुत्तों का भौंकना अब इतना बुरा भी नहीं लगता लेकिन कुत्ते की समस्या को लेकर न तो हम जागरूक हैं और न ही हमारे कर्णधार। किससे करें शिकायत, कि कुत्तों के शोर ने, हमें और पूरे परिवार को, रात भर सोने भी ना दिया।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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