श्री संजय सरोज
(सुप्रसिद्ध लेखक श्री संजय सरोज जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत। आप वर्तमान में असिस्टेंट कमिश्नर, (स्टेट-जी एस टी ) के पद पर कार्यरत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता – “रास्ते…”)
☆ कविता ☆ रास्ते… – दो कविताएं
रास्ते – एक
सर्पिल रास्ते,
दोनों तरफ खड़े हुए लंबे दरख़्त ,
शाखें मिलने को, लिपटने को, गुथने को तैयार ,
जैसे बुन रही हों,
पैराहन किसी के।
दरख़्तों के पीले पत्ते ,
सूखकर टूट कर बिखरते हुए रास्तों पर,
और उन पर आती तीखी चटक कोपलें,
जैसे गहरा कर रही हों ,
रंग किसी शाम के।
बोझिल दरख़्त,
शाम ढलने से पहले ही ,
फैल गई हैं परछाइयां जिनकी रास्तों पर ,
जैसे थक कर पसर गए हो,
दिनभर से अपना ही रास्ता तके तके….
रास्ते भाग- दो
रास्ते लंबे ,
अनंत, दूर क्षितिज तक,
गुजरती रात के साए में ,
जो जाते हैं समंदर तक।
तट पर बिछी रेत,
बिखरे हैं सीपी, शंख तमाम ,
गुजरते बादलों के बीच,
चांद लटक आया है नीचे तक।
सूंघने खुशबू सांसो की,
सुनने संगीत धड़कनों का,
पर चुपचाप लौट गया है वो,
छोड़कर हमें समंदर की लहरो पर,
दूर कहीं गुम हो जाने तक ……..
© श्री संजय सरोज
नोयडा
मो 72350 01753
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