श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। श्रावण मास में सप्ताह के बीच में उवाच के अंतर्गत पुनर्पाठ में आज प्रस्तुत है आलेख – सदाशिव।)
पुनर्पाठ –
☆ संजय उवाच # 200 ☆ सदाशिव
एक बुजुर्ग परिचित का फोन आया। बड़े दुखी थे। उनके दोनों शादीशुदा बेटे अलग रहना चाहते थे। बुजुर्ग ने जीवनभर की पूँजी लगाकर रिटायरमेंट से कुछ पहले तीन बेडरूम का फ्लैट लिया था ताकि परिवार एक जगह रह सके और वे एवं उनकी पत्नी भी बुढ़ापे में सानंद जी सकें। अब हताश थे, कहने लगे, क्या करें, परिवार में सबकी प्रवृत्ति अलग-अलग है। एक दूसरे के शत्रु हो रहे हैं। शत्रु साथ कैसे रह सकते हैं?
बुजुर्ग की बातें सुनते हुए मेरी आँखों में शिव परिवार का चित्र घूम गया। महादेव परम योगी हैं, औघड़ हैं पर उमापति होते ही त्रिशूलधारी जगत नियंता हो जाते हैं। उनके त्रिशूल में जन्म, जीवन और मरण वास करने लगते हैं। उमा, काली के रूप में संहारिणी हैं पर शिवप्रिया होते ही अजगतजननी हो जातीहैं। नीलकंठ अक्षय चेतनतत्व हैं, गौरा अखंड ऊर्जातत्व हैं। परिवार का भाव, विलोम को पूरक में बदलने का रसायन है।
शिव परिवार के अन्य सदस्य भी इसी रसायन की घुट्टी पिये हुए हैं। कार्तिकेय बल और वीरता के प्रतिनिधि हैं। वे देवताओं के सेनापति हैं। श्रीगणेश बुद्धि के देवता हैं। बौद्धिकता के आधार पर प्रथमपूज्य हैं। सामान्यत: विरुद्ध गुण माने जानेवाले बल और बुद्धि, शिव परिवार में सहोदर हैं। अन्य भाई बहनों में देवी अशोक सुन्दरी, मनसा देवी, देवी ज्योति, भगवान अयप्पा सम्मिलित हैं पर विशेषकर उत्तर भारत में अधिकांशत: शिव, पार्वती, श्रीगणेश और कार्तिकेय ही चित्रित होते हैं।
अब परिवार में सम्मिलित प्राणियों पर भी विचार कर लेते हैं। महाकाल के गले में लिपटा है सर्प। गणेश जी का वाहन है, मूषक। सर्प का आहार है मूषक। सर्प को आहार बनाता है मयूर जो कार्तिकेय जी का वाहन है। महादेव की सवारी है नंदी। नंदी का शत्रु है गौरा जी का वाहन, शेर। संदेश स्पष्ट है कि दृष्टि में एकात्मता और हृदय में समरसता का भाव हो तो एक-दूसरे का भक्ष्ण करने वाले पशु भी एकसाथ रह सकते हैं।
एकात्मता, भारतीय दर्शन विशेषकर संयुक्त परिवार प्रथा के प्रत्येक रजकण में दृष्टिगोचर होती रही है। पिछली पीढ़ी में एक कमरे में आठ-दस लोगों का परिवार साझा आनंद से रहता था। दाम्पत्य, जच्चा-बच्चा सबका निर्वहन इसी कमरे में। स्पेस नहीं था पर सबके लिए स्पेस था। जहाँ करवट लेने की सुविधा नहीं थी, वहाँ किसी अतिथि के आने पर आनंद मनाने की परंपरा थी, पर ज्यों ही समय ने करवट बदली, परिजन, स्पेस के नाम पर फिजिकल स्पेस मांगने लगे। मतभेद की लचीली बेल की जगह मनभेद के कठोर कैक्टस ने ले ली। रिश्ते सूखने लगे, परिवारों में दरार पड़ने लगी।
सूखी धरती की दरारों में भीतर प्रवेश कर उन्हें भर देती हैं श्रावण की फुहारें। न केवल दरारें भर जाती हैं अपितु अनेक बार वहीं से प्राणवायु का कोश लेकर एक नन्हा पौधा भी अंकुरित होता है।…श्रावण मास चल रहा है, दरारों को भरने और शिव परिवार को सुमिरन करने का समय चल रहा है। यह शिव भाव को जगाने का अनुष्ठान-काल है।
भगवान शंकर द्वारा हलाहल प्राशन के उपरांत उन्हें जगाये रखने के लिए रात भर देवताओं द्वारा गीत-संगीत का आयोजन किया गया था। आधुनिक चिकित्साविज्ञान भी विष को फैलने से रोकने के लिए ‘जागते रहो’ का सूत्र देता है। ‘शिव’ भाव हो तो अमृत नहीं विष पचाकर भी कालजयी हुआ जा सकता है। इस संदर्भ में इन पंक्तियों के लेखक की यह कविता देखिए,
कालजयी होने की लिप्सा में,
बूँद भर अमृत के लिए
वे लड़ते-मरते रहे,
उधर हलाहल पीकर
महादेव, त्रिकाल भए !
शिव भाव जगाइए, सदाशिव बनिए। नयी दृष्टि और नयी सृष्टि जागरूकों की प्रतीक्षा में है।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी
इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – ॐ नमः शिवाय साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
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