डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत – कुछ भी नहीं कहूँगा…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 147 – गीत – कुछ भी नहीं कहूँगा…
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कुछ भी नहीं कहूँगा।
बस चुपचाप रहूँगा।
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जो कहना था कहा, सुना
सपना अपनी आँख बुना
मेरी रही हैसियत जो
चाहा उससे लाख गुना।
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अब अपने आप दहूँगा
बस चुपचाप रहूँगा।
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देवल की प्रतिमा प्यारी
देख रही दुनिया सारी
दृष्टि सभी की दूध धुली
केवल मैं ही संसारी।
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अब अपने पाप गहूँगा
बस चुपचाप रहूँगा।
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इच्छाओं का अंत नहीं
होता सभी तुरन्त नहीं
केवल दोष यही मेरा
मैं मानव हूँ संत नहीं।
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अब अपने शाप सहूँगा
बस चुपचाप रहूँगा।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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