श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 202 ☆ देह से हूँ
समय के प्रवाह के साथ एक प्रश्न मनुष्य के लिए यक्षप्रश्न बन चुका है। यह प्रश्न पूछता है कि जीवन कैसे जिएँ?
इस प्रश्न का अपना-अपना उत्तर पाने का प्रयास हरेक ने किया। जीवन सापेक्ष है, अत: किसी भी उत्तर को पूरी तरह खारिज़ नहीं किया जा सकता। तथापि एक सत्य यह भी है कि अधिकांश उत्तर भौतिकता तजने या उससे बचने का आह्वान करते दीख पड़ते हैं।
मंथन और विवेचन यहीं से आरम्भ होता है। स्मार्टफोन या कम्प्युटर के प्रोसेसर में बहुत सारे इनबिल्ट प्रोग्राम्स होते हैं। यह इनबिल्ट उस सिस्टम का प्राण है। विकृति, प्रकृति और संस्कृति मनुष्य में इसी तरह इनबिल्ट होती हैं। जीवन इनबिल्ट से दूर भागने के लिए नहीं, इनबिल्ट का उपयोग कर सार्थक जीने के लिए है।
मनुष्य पंचेंद्रियों का दास है। इस कथन का दूसरा आयाम है कि मनुष्य पंचेंद्रियों का स्वामी है। मनुष्य पंचतत्व से उपजा है, मनुष्य पंचेंद्रियों के माध्यम से जीवनरस ग्रहण करता है। भ्रमर और रसपान की शृंखला टूटेगी तो जगत का चक्र परिवर्तित हो जाएगा, संभव है कि खंडित हो जाए। कर्म से, श्रम से पलायन किसी प्रश्न का उत्तर नहीं होता। गृहस्थ आश्रम भी उत्तर पाने का एक तपोपथ है। साधु होना अपवाद है, असाधु रहना परम्परा। सब साधु होने लगे तो असाधु होना अपवाद हो जाएगा। तब अपवाद पूजा जाने लगेगा, जीवन उसके इर्द-गिर्द अपना स्थान बनाने लगेगा।
एक कथा सुनाता हूँ। नगरवासियों ने तय किया कि सभी वेश्याओं को नगर से निकाल बाहर किया जाए। निर्णय पर अमल हुआ। वरांगनाओं को जंगल में स्थित एक खंडहर में छोड़ दिया गया। कुछ वर्ष बाद नगर खंडहर हो गया जबकि खंडहर के इर्द-गिर्द नया नगर बस गया।
समाज किसी वर्गविशेष से नहीं बनता। हर वर्ग घटक है समाज का। हर वर्ग अनिवार्य है समाज के लिए। हर वर्ग के बीच संतुलन भी अनिवार्य है समाज के विकास के लिए। इसी भाँति संसार में देह धारण की है तो हर तरह की भौतिकता, काम, क्रोध, लोभ, मोह, सब अंतर्भूत हैं। परिवार और अपने भविष्य के लिए भौतिक साधन जुटाना कर्म है और अनिवार्य कर्तव्य भी।
जुटाने के साथ देने की वृत्ति भी विकसित हो जाए तो भौतिकता भी परमार्थ का कारण और कारक बन सकती है। मनुष्य अपने ‘स्व’ के दायरे में मनुष्यता को ले आए तो स्वार्थ विस्तार पाकर परमार्थ हो जाता है।
इस तरह का कर्मनिष्ठ परमार्थ, जीवनरस को ग्रहण करता है। जगत के चक्र को हृष्ट-पुष्ट करता है। सृष्टि से सृष्टि को ग्रहण करता है, सृष्टि को सृष्टि ही लौटाता है। सांसारिक प्रपंचों का पारमार्थिक कर्तव्यनिर्वहन उसे प्रश्न के सबसे सटीक उत्तर के निकट ले आता है।
प्रपंच में परमार्थ, असार में सार, संसार में भवसार देख पाना उत्कर्ष है। देह इसका साधन है किंतु देह साध्य नहीं है। गर्भवती के लिए कहा जाता है कि वह उम्मीद से है। मनुष्य को अपने आप से निरंतर कहना चाहिए, ‘देह से हूँ पर देह मात्र नहीं हूँ। ‘ विदेह तो कोई बिरला ही हो सकेगा पर स्वयं को देह मात्र मानने को नकार देना, अस्तित्व के बोध का शंखनाद है। इस शंखनाद के कर्ता, कर्म और क्रिया तुम स्वयं हो।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी
इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – ॐ नमः शिवाय साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।