प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित कारगिल विजय दिवस पर विशेष संस्मरण “बलिदान कारगिल में…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ संस्मरण – कारगिल विजय दिवस विशेष – “बलिदान कारगिल में…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
घटना कारगिल की है । भारत के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाकर भी पाकिस्तान ने हमारी सीमाओं पर चुपचाप घुसपैठ शुरू कर दी थी । काश्मीर भारत का अभिन्न अंग है । सन् 1947 में काश्मीर रियासत के राजा हरीसिंह ने पूरी रियासत का देश में मिलना स्वीकार कर भारत देश के एक प्रदेश के रूप में रहना पसंद किया । काश्मीर पाकिस्तान से लगा हुआ है । पाकिस्तान उसे अपने देश में गैर कानूनी ढंग से मिलाने के लिये शुरू से ही लालायित है । ऐसा असंभव है । इसलिये वह हमेशा काश्मीर प्रदेश में भारतीय सीमाओं पर घुसपैठ कर, आतंक मचाकर जमीन हथियाना चाहता है । कई बार युद्ध में हारकर भी मई 1999 में सीमाओं पर द्रास – कारगिल और बटालिक क्षेत्र में ऊँचे पहाड़ों पर उसने फिर हमला किया । हमारे वीर बहादुर सैनिक प्राणपण से देश की रक्षा के लिये लड़कर विजयी हुये ।
यह कारगिल क्षेत्र की टाइगर पहाड़ी पर घुसपैठियों से युद्ध करते हुये अपनी भारत माँ के लिये प्राण देने वाले वीर हेमसिंह की वीरता की घटना है । हेमसिंह ग्राम खेड़ा फिरोजाबाद के निवासी थे । टाइगर पहाड़ी पर अपूर्व वीरता के साथ दुश्मन सेअपने भारत देश के लिए लड़ते हुये अपना बलिदान दे उन्होंने शहादत पाई । उनके मित्र नायक रामसिंह ने उनकी वीरता का वर्णन इस प्रकार किया है ।
हेमसिंह की बहादुरी देखकर दुश्मनों के भी छक्के छूट गये । कारगिल में टाइगर पहाड़ी को दुश्मनों से छुड़ाने की ज़िम्मेदारी 9 वीं पैरा यूनिट के जाँबाज कमाण्डों को सौंपी गई थी । कमाण्डो अपने दल के साथ एक के बाद एक कुछ फासले से पहाड़ी पर चढ़ रहे थे । नायक हेमसिंह भी अपने कुछ साथियों को ले पहाड़ी पर रस्सी बाँधकर चढ़ रहे थे । जब वे ऊपर पहुँचने वाले ही थे तो दुश्मनों ने गोली चलानी शुरू कर दी । भारतीय सेना दल ने भी गोली चलानी शुरू कर दी तो दुश्मन अपने बंकरों में भाग कर ऊपर से धुंआधार गोलियाँ बरसाने लगे । दुश्मन केवल 40-50 गज की दूरी पर थे । बिना कोई परवाह किये देशभक्त भारतीय सैनिक चढ़ते और बढ़ते गये तथा अनेकों दुश्मन सैनिकों को ढेर कर दिया । इसी बीच दुश्मन ने और सैनिक सहायता से बमबारी शुरू कर दी । हेमसिंह आगे बढ़ते जा रहे थे । उनके शरीर में बम के टुकड़े धंसते गये पर अपने साथियों के पीछे हटने का आग्रह ठुकराकर भी हेमसिंह अपने मोर्चे पर डटे रहे और अपनी बंदूक के निशाने से दुश्मन के चार सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया । साथियों ने उन्हें अस्पताल, जो 20 किमी. दूर था, ले जाने की तैयारी की । परन्तु अपनी कर्मभूमि पर ही कर्त्तव्य पूरा कर हेमसिंह मातृभूमि के लिये लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुये । उनकी वीरता और जाँबाजी की चर्चा हमेशा अमर रहेगी । उन्होंने अपने बलिदान से एक बार फिर सबको सिखा दिया कि मातृभूमि जिसने हमें पाला – पोसा और बड़ा किया है, का ऋण समय आने पर ऐसे आदर्श बलिदान से दिया जा सकता है ।
☆ ☆ ☆ ☆ ☆
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈