प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित बाल साहित्य ‘बाल गीतिका ‘से एक बाल गीत  – “माँ, मुझको शाला जाने दो…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 ☆ बाल गीतिका से – “माँ, मुझको शाला जाने दो…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

माँ मुझको शाला जाने दो।

पढ़-लिखकर कुछ बन जाने दो ॥

घंटी मुझको बुला रही है।

याद साथियों की आ रही है

मुझे वहाँ अच्छा लगता है।

मन में एक सपना जगता हैं ॥

पढ़ते-लिखते गाते गाना।

खेल-खेल मिल खाते खाना॥ 

दीदी मुझे प्यार करती है।

सबकी देखभाल करती है ॥

नई कहानी कह रोजाना।

सिखलाती हैं चित्र बनाना ॥

फूल भरी सुन्दर फुलवारी ।

आँखों को लगती है प्यारी

सजा साफ सुथरा आहाता ।

सदा मेरे मन को है भाता ॥

तस्वीरों से सजी दिवालें ।

कहती सब संसार सजा लें॥ 

सारा वातावरण सुहाना ।

वहाँ ज्ञान का भरा खजाना॥ 

मैं पढ़-लिख होशियार बनूँगा ।

अनुभव ले सरदार बनूँगा ।

भारत माँ को सुखी बनाने ॥

घर-घर तक खुशियाँ पहुँचाने ॥

मेहनत सोच विचार करूँगा।

जग में सबसे प्यार करूँगा ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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