श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी दो एक संवेदनशील लघुकथा – मन )
☆ लघुकथा – मन ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
मनोहर को गुज़रे बारह दिन हो गए थे। हर गुज़रे दिन साढ़े तीन साल के पोते नुराज़ ने अपने दादा को याद किया था। उसे बताया गया था कि उसके दादा भगवान जी से मिलने गए हैं। आज नुराज़ ने अपने पिता से कहा, “पापा, दादा जी को भगवान के पास गए बहुत दिन हो गए हैं। वे भगवान जी से अच्छी तरह मिल चुके होंगे। अब तो उन्हें वापस बुला लो।”
“अभी भगवान जी के साथ उनका ख़ूब मन लगा हुआ है, दादा भगवान जी के साथ मस्ती कर रहे हैं, अभी और मस्ती करने दो।”
“दादा जी तो कहते थे कि मेरे बिना कहीं भी उनका मन नहीं लगता। क्या भगवान जी मुझसे भी ज़्यादा अच्छे हैं?”
अब माहौल में सन्नाटा था। एक तरफ़ बिछोह से उत्पन्न गाढ़ी उदासी के साथ दादा के लौट आने की मासूम आश्वस्ति थी, दूसरी तरफ़ बेबस ख़ामोशी में लिपटा रुदन।
© हरभगवान चावला
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