आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – दे रहे शत्रु को दावत।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 16 – दे रहे शत्रु को दावत… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

सीमा पर दिन-रात डटे

सैनिक कर रहे हिफाजत

उनसे बढ़कर नहीं हमारी

सेवा, भक्ति, इबादत

 

वे उपेक्षा के शिकार

हो रहे आज बलिदानी

जिनने हँसकर मातृ-भूमि पर

दी अपनी कुर्बानी

ऐसे खेल न खेलो

जिनसे होने लगे बगावत

 

विपदा में जो आर्तनाद

करते थे पड़े चरण में

अभयदान देकर तब

हमने रक्खा उन्हें शरण में

वे कृतघ्न अपने विरुद्ध

दे रहे शत्रु को दावत

 

इतना ओछापन चरित्र का

हुए स्वार्थ में अंधे

तस्कर जमाखोर करते हैं

सारे कुत्सित धंधे

जीवन रक्षक औषधियों में

करने लगे मिलावट

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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