श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 47 ☆ देश-परदेश – समोसा ☆ श्री राकेश कुमार ☆

बचपन में हमारे शहर में “मौसा के समोसे” बहुत प्रसिद्ध होते थे। साठ के दशक के मध्य में दस पैसे का समोसा क्रय करने के लिए मित्र से भागीदारी में इसका बटवारां थोड़ा कठिन होता था। इसकी बनावट तिकोनी होने के कारण हलवाई से ही इसके दो टुकड़े कर मित्र से भागीदारी पूरी हो जाती थी।

उपरोक्त चित्र एक “बाहुबली समोसे” का है। इसका वज़न मात्र आठ किलो हैं। इसका निर्माण मेरठ शहर में हुआ हैं। इसे विश्व का सबसे वजनी समोसा होने का गौरव प्राप्त हुआ हैं।

कुछ हट के करने की दौड़ में जयपुर में एक विक्रेता ने अपना नाम ही “ठग्गू के समोसे” रख लिया हैं। पुरानी कहावत है, जैसा नाम वैसा ही काम! झूट/ठग्गी का जीवन भी छोटा होता हैं, जब उन्होंने अपने नाम को ही अपना काम बना लिया, तो भगवान ( ग्राहक) ने भी उनका साथ नहीं दिया।

“स्वीगी” जो देश के सबसे बड़े खाद्य दूत की श्रेणी में आते है, ने भी समोसे को सबसे अधिक बिकने वाला खाद्य घोषित किया हैं। उनको मिलने वाले ऑर्डर में हर पांचवा ऑर्डर समोसे का ही रहता हैं।

देश के पूर्वी भाग में इसकी बनावट से मिलते जुलते फल सिंगाढ़ा के नाम से जाना जाता हैं। पश्चिमी भाग में इसको “पंजाबी समोसा” कह कर ग्रहण किया जाता हैं। वैसे वडा पाव में वड़े के स्थान पर भी यदा कदा समोसे को स्थान दे दिया जाता हैं। देश के उत्तर और मध्य भाग में तो समोसा ही राजा हैं।

मांसाहारी भोजन के शौकीन भी समोसे में आलू के स्थान पर कीमा के समोसे का आनंद लेते हैं। वैसे, समोसा हर  मोसम में खाया जाता हैं, परंतु शीत ऋतु में इनका पाचन सरल होता हैं।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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