श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “प्रत्यासी मीमांसा…”।)
☆ तन्मय साहित्य #194 ☆
☆ प्रत्यासी मीमांसा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
वोट डालना धर्म हमारा
और कुकर्म तुम्हारे हैं
तुम राजा बन गए
वोट देकर तो हम ही हारे हैं।
एक चोर इक डाकू है
ठग एक, एक है व्यभिचारी
एक लुटेरा हिंसक है इक,
एक यहाँ अत्याचारी,
ये हैं उम्मीदवार तंत्र के
इनके वारे न्यारे हैं……
चापलूस है कोई तो
कोई धन का सौदागर है,
है कोई आतंकी इनमें
तो कोई बाजीगर है,
इनके कोरे आश्वासन
औ’ केवल झूठे नारे हैं ……
इनमें हैं मसखरे कई
कोई नौटंकी वाले हैं
कुछ ने पहन रखी ऊपर
नकली शेरों की खाले हैं,
संत फकीर माफियाओं के
हिस्से न्यारे-न्यारे हैं ……
इनमें राष्ट्र विरोधी कुछ-
कुछ काले धंधे वाले हैं
कुछ एजेंट विदेशों के
कुछ के अपने मदिरालै हैं,
काले पैसों के जंगल में
सब केअलग नजारे हैं ……
नाते-पोते नेताओं के
कुछ के बेटे बेटी हैं
भरे पेट वालों के ही तो
कब्जे में मत पेटी है,
झूठ फरेबी, मक्कारी से
बनी हुई सरकारें हैं…..
जालसाज ये धूर्त खिलाड़ी
नाटक बाज मदारी है
कुर्सी कुर्सी खेल खेलते
लफ्फाजी अय्यारी हैं,
ठगबंधन कर शोर मचाते
नकली भाईचारे हैं……
चेहरे हैं जिनके उजले
उनमें कुछ गूंगे बहरे हैं
साफ़ छबि वालों के मुँह पर
आदर्शो के पहरे हैं,
जब्त जमात उन्हीं की
जो सीधे-साधे बेचारे है…
☆ ☆ ☆ ☆ ☆
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈