श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 205 ☆ कलयुग केवल नाम अधारा
राम नाम अवलंब बिनु परमारथ की आस।
बरसत वारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकास।।
श्री राम का नाम परमार्थ अर्थात धर्म, अर्थ, काम मोक्ष प्रदान करता है। उनके नाम के बिना भवसागर से पार होने की कल्पना कुछ ऐसी ही है, जैसे कोई बारिश की बूँदों के सहारे आकाश में जाना चाहता हो। अर्थ स्पष्ट है, श्री राम का नाम तारणहार है।
श्री राम के नाम को, उनकी अतुल्य जीवनयात्रा को घर-घर और जन-जन तक जनभाषा में पहुँचानेवाले ग्रंथ का नाम है, रामचरितमानस। कौशल्या हितकारी राम से रणकर्कश श्री राम की कथा है रामचरितमानस, राजा राम से लोकनायक श्री राम होने की गाथा है रामचरितमानस। रामचरितमानस श्रीराम के व्यक्तित्व और कृतित्व की अशेष यात्रा है। रामचरितमानस में को अवधी भाषा में लिखा गया है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस अमर कृति का लेखन विक्रम संवत 1631 तदनुसार ईस्वी सन 1574 को मंगलवार श्री रामनवमी के दिन आरंभ किया था। यह लेखन 2 वर्ष 7 महीने और 26 दिन चला। विक्रम संवत 1633 अर्थात ईस्वी सन 1576 को श्री राम विवाह के दिन यह संपन्न हुआ।
रामचरितमानस में कुल सात खंड / अध्याय हैं, बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किन्धाकांड, सुन्दरकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड।
मानस में संस्कृत और प्राकृत के कुल मिलाकर 18 छंदों में सृजन हुआ है। रामचरितमानस में कुल 10902 पद हैं। इनमें 9388 चौपाई हैं। मानस में 1172 दोहा हैं। इसमें 87 सोरठा हैं। इस महाकाव्य में 208 छंद हैं जिनमें हरिगीतिका, त्रिभंगी, तोमर, चौपैया सम्मिलित हैं। इस कालजयी ग्रंथ में 47 श्लोक हैं। इन श्लोकों में शार्दूलविक्रीडित, अनुष्टुप, प्रमाणिका, वंशस्थ, उपजाति, मालिनी, वसंततिलका, रथोद्धता, भुजंगप्रयात, तोटक, स्रग्धरा हैं।
यद्यपि स्थूल रूप से देखें तो रामचरितमानस, रामकथा है, तथापि सूक्ष्म अवलोकन-अध्ययन करें तो पाएँगे कि इसके अक्षर-अक्षर में जीवनमूल्य और नीतिमत्ता साक्षात दृष्टिगोचर होते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि श्री राम का जीवनवृत्त ही ऐसा है। संभवत: यही कारण था, जिसने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त से लिखवाया,
राम, तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है।
कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है।।
रामचरितमानस ने श्री राम को एक अनन्य व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया।
राम मर्यादापुरुषोत्तम हैं, लोकहितकारी हैं। राम एकमेवाद्वितीय हैं।
रामचरितमानस पढ़ना अर्थात सदाचार, नीतिमत्ता और जीवन के आदर्श पढ़ना। विशेषकर उत्तरभारत में तो मानस के दोहे और चौपाइयाँ, लोकोक्तियों के समान चलन में हैं।
अवधी में होने के कारण रामचरितमानस सार्वजनीन हुआ, जन-जन की जिह्वा का गान बना। जिस तरह बालक को दादी, नानी कहानी सुनाती हैं, कुछ उसी तरह हर आयुसमूह के लिए दादी, नानी की लोककथा बना रामचरितमानस। यही कारण है कि गोस्वामी तुलसीदास रचित मानस का पारायण आगे चलकर परम्परा बना।
वस्तुत: संसार रूपी सागर में हर मनुष्य एक घड़ा है, एक घट है। इस घट में रावण का निवास है पर श्रीराम का भी वास है। मनुष्य से अपेक्षित है कि वह भीतर के श्रीराम का जागरण और अंतर्भूत रावण का मर्दन करे।अपने अवगुणों का दहन, और रामत्व का जागरण ही रामचरितमानस का सच्चा पारायण है।
‘रामत्व’ की अनुकम्पा गोस्वामी तुलसीदास को प्राप्त हुई थी। तभी श्रीरामचरितमानस में आपने लिखा,
जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥
अर्थात जगत में जितने जड़ और चेतन जीव हैं, सबको राममय जानकर मैं उन सबके चरणकमलों की सदा दोनों हाथ जोड़कर वन्दना करता हूँ।
गोस्वामी जी के कविरूप का ध्रुवतारा है रामचरितमानस। कहा गया है,
कलयुग केवल नाम अधारा।
सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा।
कलयुग में केवल श्री राम का नाम एक आधार है। उनके सुमिरन मात्र से, केवल उनके स्मरण से मनुष्य भवसागर पार हो जाता है।
श्री राम के चरित के माध्यम से जीवन की ज्ञात, अज्ञात स्थितियों को जानने, समझने और हल की दिशा पर प्रकाश डालने का माध्यम है रामचरितमानस। कालजयी साहित्य का सार्वकालिक उदाहरण है रामचरितमानस।
श्रावण शुक्ल सप्तमी को गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती है। विश्व को रामचरितमानस जैसा अनन्य महाकाव्य देनेवाले गोस्वामी जी को नमन।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी
इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – ॐ नमः शिवाय साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।