श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# वो पहले सा प्यार नहीं रहा… #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 143 ☆
☆ # वो पहले सा प्यार नहीं रहा… # ☆
तुम्हारे वादों पर
इरादों पर
मुझे एतबार नहीं रहा
सच कहूं –
तुम्हें मुझसे
वो पहले सा प्यार नहीं रहा
मैं तो आंखें मूंदकर
तुम्हारे हर झूठ को
सच मान बैठा था
तुम्हारी दीवानगी में
दुनिया को ठुकरा कर
गर्व से गर्दन ऐंठा था
अब तुम्हारी बातों में
वो पहले सा इसरार नहीं रहा
तुम्हें मुझसे
वो पहले सा प्यार नहीं रहा
हमने खाई थी कसमें
जीवन भर साथ निभाने की
चाहे दर्द हो या खुशी
सदा मुस्कराने की
हाथ क्या छूटा
दिल क्या टूटा
तुम्हारी बातों में
वो पहले सा इजहार नहीं रहा
तुम्हें मुझसे
वो पहले सा प्यार नहीं रहा
जिंदगी दे रही
तुमको एक मौका है
साबित करो
यह प्यार है या धोका है
तुम अपने वादों से
मुकर रही हो
कशमकश से
गुजर रही हो
तुम्हारा दिल
शायद मिलने को
वो पहले सा बेकरार नहीं रहा
तुम्हें मुझसे
वो पहले सा प्यार नहीं रहा
तुमने ताश के पत्तों से
महल बनाया था
मैंने भी उसे
प्यार से सजाया था
ना तुम रानी बन पाई
ना मैं राजा बन पाया
ना तुम मेरी बन पाई
ना मैं तुम्हारा बन पाया
तुम्हारी आंखों में प्यार का
वो पहले सा खुमार नहीं रहा
तुम्हें मुझसे
वो पहले सा प्यार नहीं रहा/
© श्याम खापर्डे
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