ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 37

 

मेरा सदैव प्रयत्न रहता है कि मैं ई-अभिव्यक्ति से जुड़े प्रत्येक सम्माननीय लेखक एवं पाठकों से संवाद बना सकूँ। मैं सीधे तो संवाद नहीं बना पाया किन्तु, सम्माननीय लेखकों की रचनाओं के माध्यम से अवश्य जुड़ा रहा।  एक कारण यह भी रहा कि हम  ई-अभिव्यक्ति को तकनीकी दृष्टि से और सशक्त बना सकें ताकि हैकिंग एवं संवेदनशील विज्ञापनों से बचा सकें। अंततः इस कार्य में आप सबकी सद्भावनाओं से हम सफल भी हुए।

ई-अभिव्यक्ति में बढ़ती हुई आगंतुकों की संख्या हमारे सम्माननीय लेखकों एवं हमें प्रोत्साहित करती हैं।  हम कटिबद्ध हैं आपको और अधिक उत्कृष्ट साहित्य उपलब्ध कराने  के लिए।

 

हम प्रयासरत हैं कि आपको तकनीकी रूप से आगामी अंकों को नए संवर्धित स्वरूप में प्रस्तुत किया जा सके।

अब मेरा प्रयास रहेगा कि आपसे ई-संवाद अथवा अपनी रचनों के माध्यम से जुड़ा रहूँ ।

अंत में मैं पुनः इस यात्रा में आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ और मजरूह सुल्तानपुरी जी की निम्न पंक्तियाँ  दोहराना चाहता हूँ :

 

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर

लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया

आज बस इतना ही।

 

हेमन्त बवानकर 

12 अगस्त 2019

 

(अपने सम्माननीय पाठकों से अनुरोध है कि- प्रत्येक रचनाओं के अंत में लाइक और कमेन्ट बॉक्स का उपयोग अवश्य करें और हाँ,  ये रचनाओं के शॉर्ट लिंक्स अपने मित्रों के साथ शेयर करना मत भूलिएगा।)

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments