डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत – अभिनय का शाप…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 153 – गीत – अभिनय का शाप…
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अधरों पर शब्द और मन में संताप
जीवन की शकुन्तला, अभिनय का शाप
रोज रोज नींद जगे
जनमती थकान
हूटर के हाथ बिके
गीत के मकान।
तख्ते का कोलतार
कक्षा का शोर
पानी के संग साथ
निगल गई भोर ।
गोद लिये सपनों पर, शासन का ताप ।
लेती है दोपहरी
प्रेस की पनाह
प्रतिभा की परवशता
पथरीली राह।
शब्दों को अर्थ मिले
भावों की ओट
अर्थ का अनर्थ करे
घावों पर चोट ।
बेच दिया नाम गाँव, किया बड़ा पाप ।
कुहराई शामों का
संगी है कौन
दरवाजा साधे है
सिन्दूरी गौन।
मित्रों की भीड़भाड़
परिचय का जाल
किलक भरे आँगन में
उफनाई दाल।
गीत नहीं मुझको ही बाँच रहे आप।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈