डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत – अभिनय का शाप…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 154 – गीत – आँसू तक खुदगर्ज हो गया…
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तुमने सुख की साख भुनाली, मुझ पर दुख का कर्ज हो गया
किससे करूँ शिकायत जाकर, आँसू तक खुदगर्ज हो गया।
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बदनामी का ‘वीजा’ देकर, मुझे दर्द के देश भिजाया
सपने के शहजादे ने है, सुख का नहीं सिंहासन पाया।
मैं अपना अधिकार न पाऊँ, यही तुम्हारा फर्ज हो गया।
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आखिर कैसे समझाता मैं, तुमने मेरी एक न मानी।
आते ही जो विदा माँग ले, कैसे हो उसकी अगवानी ।
लिखने चला लाभ का लेखा, मगर तुम्हारा हर्ज हो गया ।
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किस माटी से रचे गये तुम, कैसे यह सब कर लेते हो
जब जब होंठ माँगते पानी, अंगारा तुम धर देते हो
मेरा छोटा सा आग्रह भी, अपराधों में दर्ज हो गया ।
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भेजे थे संकेत पाहुने, तुमने कहा-बड़ी उलझन है
भावुकता आई उभार पर, तुमने कहा कि पागलपन है।
शब्दों का संतुलन ठीक था, गीत मगर बेतर्ज हो गया ।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈