श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 209 ☆ उत्सव की राह
मनुष्य चंचलमना है। एक काम निरंतर नहीं कर सकता। उत्सवधर्मी तो होना चाहता है पर उत्सव भी रोज मना नहीं पाता।
वस्तुतः वासना अल्पजीवी है। उपासना शाश्वत है। कुछ क्षण, कुछ घंटे, कुछ दिन, महीने या धन की हो तो जीवन का बड़ा कालखंड, इससे अधिक नहीं ठहर पाती मनुष्य की वासना। उपासना जन्म-जन्मांतर चल सकती है।
उपासना अर्थात धूनि रमाना भर नहीं है। सच्ची धूनि रमाना बहुत बड़ी बात है, हर किसीके बस की नहीं।
उपासक होने का अर्थ है-जिस भी क्षेत्र में काम कर रहे हो अथवा जिस कर्म के प्रति रुचि है, उसमे डूब जाओ, उसके लिए समर्पित हो जाओ। अपने क्षेत्र में अनुसंधान करो। उसमें नया और नया तलाशो, उसे अधिक और अधिक आनंददायी करने का मार्ग ढूँढ़ो।
हमारी हाउसिंग सोसायटी में हर घर से कूड़ा एकत्र कर सार्वजनिक कूड़ेदान में फेंकने का काम करनेवाला स्वच्छताकर्मी अपने साथ गत्ते के टुकड़े लेकर चलता है। डस्टबिन में नीचे गत्ता या मोटा कागज़ लगाता है। कुछ दिनों में कचरे से गत्ता या कागज़ जब गल जाता है, उसे बदलता है। यह उसके निर्धारित काम का हिस्सा नहीं है पर ऐसे भी की जाती है कर्म की उपासना।
उपासना ध्यानस्थ करती है। ध्यान आत्मसाक्षात्कार कराता है। स्वयं से साक्षात्कार परिष्कार करता है। परिष्कार चिंतन को दिशा देता है। चिंतन, चेतना में रूपांतरित होता है। चेतना, दिव्यता का आविष्कार करती है। दिव्यता जीवन को सच्चे उत्सव में बदलती है। साँस-साँस उत्सव मनाने लगता है मनुष्य।
आज संकल्प करो, न करो। बस उपासना के पथ पर डग भरो। आवश्यक नहीं कि इस जन्म में उत्सव तक पहुँचो ही। पर जो राह उत्सव तक ले जाए, उस पर पाँव रखना क्या किसी उत्सव से कम है?
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
माधव साधना- 11 दिवसीय यह साधना बुधवार दि. 6 सितम्बर से शनिवार 16 सितम्बर तक चलेगी
इस साधना के लिए मंत्र होगा- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।