श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सातवाँ आसमान“।)
हम इस धरती पर रहते हैं, हमारे ऊपर हमें नीला आसमान नज़र आता है, और सुना है, हमारे नीचे पाताल लोक है। पाप पुण्य और स्वर्ग नर्क हम ज्यादा नहीं समझते, लेकिन हमें लगता है, स्वर्ग लोक ऊपर है और नर्क हमारे नीचे। जो ऊपर उठ जाता है, वह स्वर्ग में चला जाता है और जो नीचे गिर जाता है, वह नर्क में चला जाता है।
लोगों की अपने कर्म से ही सद्गति अथवा दुर्गति होती है, पाप अगर उसे रसातल में पहुंचा देता है तो क्रोध में उसका पारा सातवें आसमान तक पहुंच जाता है। वैसे हम नहीं जानते, आसमान कितने होते हैं।।
प्रेम अगर सृष्टि में सृजन का बीज बोता है, तो क्रोध में विनाश की शक्ति होती है। शक्ति भी दैवीय और आसुरी होती है। कृष्ण अगर प्रेम का प्रतीक हैं, तो ब्रह्मा सृजन के आधार। पालनकर्ता अगर विष्णु हैं तो संहारक रुद्र के अवतार।
रुद्र के कितने अवतार हैं, क्रोधाग्नि सब कुछ भस्म कर डालती है, अगर समुद्र अपनी मर्यादा लांघता है तो मर्यादा पुरुषोत्तम का क्रोध उसे नतमस्तक कर देता है। महर्षि दुर्वासा को तो क्रोध का अवतार ही कहा गया है।।
शक्ति से ही सृजन होता है और शक्ति से ही विसर्जन भी। कृष्ण का बाल स्वरूप एकमात्र ऐसी अवस्था है, जो भक्तों के लिए उनका शाश्वत, सनातन स्वरूप है। सूर और मीरा के आराध्य कृष्ण गिरधर गोपाल ही हैं।
जिस दिन इस संसार से प्रेम समाप्त हो जाएगा, सृष्टि का विनाश हो जाएगा। सृष्टि के हर बाल गोपाल में राम और कृष्ण ही तो विराजमान हैं। अनासक्त प्रेम और वात्सल्य के प्रतीक गोवर्धन गोपाल, नंद के लाल नटखट नंदकिशोर नटराज, जग के पालनहार, तारनहार भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर सभी प्रेमी रसिकों का अभिनंदन। जन्माष्टमी की बधाई।
सबसे ऊंची प्रेम सगाई।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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