(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है शिक्षक दिवस पर एक विशेष कविता – प्रणाम गुरू जी !)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 229 ☆
जन्माष्टमी विशेष ☆ नाटक – कालिका का मदमर्दन…
कालिका का मदमर्दन… नदियो में जल प्रदूषण के विरुद्ध पौराणिक संदेश
नांदी पाठ … नेपथ्य से
पुरुष स्वर .. दुनिया की अधिकांश सभ्यतायें नदी तटों पर विकसित हुईं हैं . प्रायः बड़े शहर आज भी किसी न किसी नदी या जल स्त्रोत के तट पर ही स्थित हैं . औद्योगिकीकरण का दुष्परिणाम यह हुआ है कि नदियो को हम कल कारखानो के अपशिष्ट से प्रदूषित कर रहे हैं .कृष्ण की यमुना की जो दुर्दशा आज हमने औद्योगिक प्रदूषण से कर डाली है वह चिंतनीय है . यमुना में कालिया नाग का प्रसंग वर्तमान संदर्भो में नदियो में प्रदूषण का प्रतीक है .
स्त्री स्वर .. कृष्ण लीला में कालिया नाग के अंत का कथानक है जिसे नाट्य रूप में आपके लिये प्रस्तुत किया जा रहा है . कालिया नाग यमुना को विष वमन कर प्रदूषित करता है , जिससे यमुना के जलचर व तटो के वनस्पति व प्राणियो पर कुप्रभाव पड़ता है . बाल कृष्ण कालिका नाग का अंत करते हैं . यह दृष्टांत वर्तमान संदर्भो में नदियो में हो रहे प्रदूषण के अंत हेतु किये जा रहे प्रयासो को लेकर प्रासंगिक है .
मंच पर सतरंगे वस्त्रो में सूत्रधार का प्रवेश ..
सूत्रधार .. कालिया नाग जिस कुण्ड में यमुना में रहता था, उसका जल उसके विष की गर्मी से खौलता रहता था. उसके ऊपर उड़ने वाले पक्षी तक झुलसकर उसमें गिर जाया करते थे. विषैले जल की उत्ताल तरंगों का स्पर्श करके जब वायु का प्रवाह होता तो नदी तट के घास-पात, वृक्ष, पशु-पक्षी आदि असमय काल कवलित हो जाते थे. यह स्थिति चिंताजनक थी . एक दिन गेंद खेलते हुए बाल कृष्ण ने अपने सखा श्रीदामा की गेंद यमुना में फेंक दी. श्रीदामा गेंद वापस लाने के लिए कृष्ण से जिद करने लगे . बाल कृष्ण यमुना में कूद पड़े . वे उछलकर कालिया के फनों पर चढ़ गए और उस पर पैरों से प्रहार करने लगे , और जल प्रदूषण के प्रतीक कालिया पर विजय प्राप्त कर ली . वृंदावन के नर-नारियों ने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण के एक हाथ में बाँसुरी थी और दूसरे हाथ में वह गेंद थी, जिसे लेने का बहाना बनाकर वे यमुना में कूदने की लीला कर रहे थे .
दृश्य ..
श्रीदामा … हे कृष्ण ! तुमने मेरी गेंद यमुना जी में क्यों फेंक दी , मुझे मेरी गेंद वापस लाकर दो .
बाल कृष्ण .. हे मित्र , यमुना में प्रवाह बहुत है , देखो जल भी कितना प्रदूषित है . वहां विषधर कालिया नाग का वास है . मैने जान बूझकर थोड़े ही गेंद यमुना जी में फेंकी है , वह तो खेलते हुये जल में चली गई . तुम घर चलो मैं तुम्हें दूसरी गेंद दे दूंगा .
श्रीदामा … नहीं नहीं कृष्ण ! मुझे दूसरी गेंद नहीं चाहिये , तुम मुझे अभी ही मेरी वही गेंद लाकर दो . मुझे अपनी वह गेंद अति प्रिय है .
बाल कृष्ण .. अच्छा श्रीदामा ! तुम नही मानते हो तो मैं तुम्हारी वही गेंद लाने का यत्न करता हूं . कृष्ण धीरे धीरे यमुना जी में प्रवेश कर जाते हैं ..
कृष्ण का यमुना में प्रवेश का प्रतीकात्मक अभिनय ..
संगीत अंतराल … मंच पर रोशनी कम की जावेगी .. पुनः धीरे धीरे प्रकाश बढ़ाया जावेगा
किनारे खड़े बाल सखा … इतनी देर हो गई कृष्ण कहां गये … अरे श्रीदामा तुमने ही हमारे कृष्ण को जबरदस्ती यमुना जी में भेजा है .
दूसरा सखा .. वह भी केवल एक गेंद के लिये .
एक गोपी … रोते सुबकते हुये .. श्रीदामा ! मेरे कृष्ण को वापस लाओ , मैं कुछ नही जानती . जोर से आवाज लगाते हुये … हे कृष्ण जल्दी वापस आ आओ .
श्रीदामा .. रोते हुये .. नदी की ओर उस तरफ देखते हुये जहां से कृष्ण ने नदी में प्रवेश किया था .. अच्छा कृष्ण , तुम लौट आओ , मुझे गेंद नहीं चाहिये .
धीरे धीरे बृंदावन के नर नारी एकत्रित हो जाते हैं
नर नारियो का समूह .. सभी पुकारने लगते हैं , हे कन्हैया ! तुम कहां हो ! लौट आओ …
प्रकाश मध्दिम होता है और … पुनः प्रकाश बढ़ता है , बैकग्राउंड में पर्दे पर नदी का दृश्य .. कृष्ण कालिका नाग के फन पर सवार मुरली बजाते हुये दिखते हैं …
नर नारियो की भीड़ .उल्लास से .. हमारे कृष्ण कालिका पर सवार होकर नृत्य कर रहे हैं , उन्होंने कालिका का मद मर्दन कर दिया है .नर नारी हर्ष से नृत्य करते हैं .
पार्श्व संगीत …
काले नाग के नथैया
अपने प्यारे कृष्ण कन्हैया
जय कृष्ण .. जय कृष्ण ..
फन पर हुये सवार भैया
अपने प्यारे कृष्ण कन्हैया
जय कृष्ण .. जय कृष्ण ..
बांसुरी की धुन के नाद के साथ परदा गिरता है .
नेपथ्य स्वर … हे कृष्ण , द्वापर में तो आपने कालिका का मद मर्दन कर यमुना को बचा लिया था। आज फिर यमुना ही नहीं सारी की सारी नदियां प्रदूषण से दुखी हैं। आइए प्रभु नव रूप में पधारिए और हमारे जल स्रोतों की प्रदूषण मुक्ति के लिए हमे राह दिखाइए।
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
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