श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे
कवितेचा उत्सव
☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 169 – जन्मले सिद्धार्थ ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆
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लुंबीनी या पिठी।
महामाया पोटी।
दिव्य रत्न।
पिता शुद्धोदन।
हर्षलासे फार।
सजे दरबार।
स्वागतास।
होता सात दिन।
माता स्वर्गवास।
लाभली ना कूस।
मातृत्वाची।
माय मरो परि।
मावशी उरावी।
उक्ती सार्थ व्हावी।
गौतमीने।
माता गौतमीने।
केला प्रतिपाळ।
गौतम ते नाम।
सार्थ झाले।
ऋषी विश्वामित्र।
देते झाले ज्ञान।
कौशल्य निपून।
राजपुत्र।
भार्य ती यशोदा।
पुत्र यशोधन।
भाग्य प्रतिदिन।
उजळले।
मानवी व्यथेने।
मन खिन्न झाले।
जागृत ते केले।
वैराग्यासी।
त्यागुनी संसार।
केले तप ध्यान।
दुःखाचे कारण।
शोधण्यास।
पुनव वैशाखी।
लाभे बोधीतत्व।
जीवनाचे सत्व।
सापडले।
दिव्य त्या ज्ञानाचा।
करण्या प्रसार।
विश्वची संसार।
बुद्धांसाठी।
बौद्ध धम्माचे ते।
थोर संस्थापक।
ज्ञान ते सम्यक।
जगा दिले।
सम्यक ती दृष्टी।
बुद्धमय सृष्टी ।
करुनिया वृष्टी।
साधकास।
वैशाखी पुनव।
अवघे जीवन।
जन्म,दिव्य ज्ञान।
नि निर्वाण।
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© रंजना मधुकर लसणे
आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली
9960128105
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈